
नई दिल्ली। भारत और पाकिस्तान—दो पड़ोसी, दो ऐतिहासिक शत्रु और दो परमाणु संपन्न देश। जब भी दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ता है, पूरी दुनिया की धड़कनें तेज़ हो जाती हैं। एक बार फिर दक्षिण एशिया की फिजा में बारूद की बू है। पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में जो दरार उभरी है, वह अब गहरी खाई बनती दिख रही है। जहां भारत ने सख्त रुख अपनाते हुए सैन्य और कूटनीतिक मोर्चे पर जवाबी कार्रवाई शुरू कर दी है, वहीं पाकिस्तान भी जवाबी चेतावनियों के साथ मिसाइल परीक्षण जैसे कदम उठा रहा है। क्या यह केवल दिखावा है, या फिर युद्ध की आहट है?
1. पहलगाम आतंकी हमला और बढ़ता तनाव
इस बार का तनाव कोई सामान्य सीमा उल्लंघन या कूटनीतिक तकरार नहीं है। पहलगाम में हुए आत्मघाती हमले में सुरक्षाबलों के कई जवान शहीद हो गए। यह हमला न सिर्फ सैन्य प्रतिष्ठानों पर था, बल्कि यह भारत की आत्मा पर हमला माना गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे “राष्ट्र की आत्मा पर वार” कहा और स्पष्ट कर दिया कि अब केवल प्रतिक्रिया नहीं, निर्णायक कार्रवाई की जरूरत है।
इस हमले के पीछे जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर जैसे संगठनों का हाथ होने की पुष्टि के बाद भारत ने पाकिस्तान को सीधे तौर पर दोषी ठहराया। भारत के अनुसार, ये संगठन पाकिस्तान की धरती पर पनपते हैं और वहां की खुफिया एजेंसियों का अप्रत्यक्ष समर्थन प्राप्त करते हैं।
2. सैन्य तैयारियां और शक्ति प्रदर्शन
भारत ने हमले के ठीक बाद राफेल, सुखोई-30 और तेजस जैसे अत्याधुनिक लड़ाकू विमानों के साथ युद्धाभ्यास किया। इससे यह स्पष्ट संकेत दिया गया कि भारत अब किसी भी स्थिति से निपटने को तैयार है। थल सेना की भी कई यूनिट्स को पश्चिमी सीमा पर हाई अलर्ट पर रखा गया है।
भारतीय नौसेना ने भी अरब सागर में अपनी गश्त बढ़ा दी है और सबमरीन यूनिट्स को तैनात कर दिया गया है। यह कदम पाकिस्तान को यह बताने के लिए काफी है कि भारत अब रक्षात्मक नीति नहीं, बल्कि प्रिवेंटिव स्ट्राइक की दिशा में सोच सकता है।
3. पाकिस्तान का जवाब और मिसाइल अलर्ट
भारत की सैन्य गतिविधियों के जवाब में पाकिस्तान ने भी अपनी ‘गज़नवी’ और ‘शाहीन’ मिसाइलों के परीक्षण का अलर्ट जारी कर दिया। यह सिर्फ सैन्य तैयारी का संकेत नहीं, बल्कि एक मनोवैज्ञानिक युद्ध भी है। पाकिस्तान का यह दावा है कि वह अपनी संप्रभुता की रक्षा के लिए किसी भी हद तक जा सकता है।
यहां एक अहम तथ्य यह भी है कि पाकिस्तान अपने आंतरिक राजनीतिक संकट और आर्थिक बदहाली से जूझ रहा है। वहां की सेना लंबे समय से ऐसे तनावों का उपयोग अपने प्रभाव को बनाए रखने के लिए करती रही है। ऐसे में यह आशंका भी जताई जा रही है कि पाकिस्तान इस बार सीमा पर तनाव बढ़ाकर अपने आंतरिक संकटों से ध्यान भटकाना चाहता है।
4. अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया: वैश्विक मंच पर भारत का कूटनीतिक दबाव
भारत ने 27 देशों के राजनयिकों को बुलाकर पाकिस्तान की भूमिका के प्रमाण साझा किए। अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन और रूस जैसे देशों ने भारत की चिंताओं को जायज़ बताया है और पाकिस्तान से आतंकवाद पर कठोर कार्रवाई की मांग की है। रूस ने दोनों देशों के बीच मध्यस्थता की पेशकश की है।
इस अंतरराष्ट्रीय समर्थन के दम पर भारत ने पाकिस्तान को वैश्विक मंचों पर अलग-थलग करने की नीति पर काम शुरू कर दिया है। फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) में पाकिस्तान को ब्लैकलिस्ट करने की प्रक्रिया को फिर से गति देने की भी बात सामने आई है।
5. राजनीतिक एकजुटता और भारत का जनमत
पहलगाम हमले के बाद भारत के राजनीतिक परिदृश्य में एक दुर्लभ दृश्य देखने को मिला—सरकार और विपक्ष एक सुर में बोले। संसद में सर्वसम्मति से पाकिस्तान के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की गई। यह इस बात का संकेत है कि अब केवल सरकार नहीं, बल्कि पूरा देश एक निर्णायक मोड़ पर पहुंच गया है।
सोशल मीडिया से लेकर सड़कों तक, लोगों का गुस्सा और भावना स्पष्ट है—अब और नहीं। देश के नागरिकों में यह भावना प्रबल होती जा रही है कि पाकिस्तान को एक बार निर्णायक रूप से सबक सिखाया जाना चाहिए।
6. क्या यह युद्ध की ओर बढ़ता कदम है?
इतिहास गवाह है कि भारत और पाकिस्तान के बीच तीन बड़े युद्ध (1947, 1965, 1971) हो चुके हैं। इसके अलावा 1999 का करगिल युद्ध भी एक सीमित सैन्य संघर्ष था। इन युद्धों में हमेशा पाकिस्तान की आक्रामकता और भारत की प्रतिक्रिया का पैटर्न सामने आया है।
लेकिन अब बात अलग है। दोनों देश परमाणु शक्ति संपन्न हैं। ऐसे में किसी भी युद्ध का परिणाम सिर्फ दो देशों तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि यह एक अंतरराष्ट्रीय संकट बन सकता है। यही कारण है कि दुनिया की नजरें हर मोड़ पर टिकी हुई हैं।
7. युद्ध और शांति के बीच झूलती कूटनीति
भारत अब युद्ध को अंतिम विकल्प मानते हुए कूटनीतिक दबाव और सर्जिकल स्ट्राइक जैसे विकल्पों की रणनीति अपना रहा है। इससे पहले भी पुलवामा हमले के बाद भारत ने बालाकोट में एयरस्ट्राइक करके यह साबित कर दिया था कि वह जरूरत पड़ने पर सीमाओं को पार करने से नहीं हिचकिचाएगा।
इस बार भी सरकार के भीतर ‘डिसीज़िव स्ट्राइक’ की चर्चा चल रही है। लेकिन साथ ही विदेश मंत्रालय और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार भी अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ मिलकर एक संगठित कूटनीतिक दबाव बनाने में जुटे हैं।
8. परमाणु युद्ध का खतरा: कितनी हकीकत, कितनी कल्पना?
जब भी भारत-पाक तनाव बढ़ता है, एक सवाल अनिवार्य रूप से उठता है—क्या यह परमाणु युद्ध का रूप ले सकता है? पाकिस्तान ने कई बार “फर्स्ट यूज़” की नीति का इशारा किया है, जबकि भारत की नीति अब तक “नो फर्स्ट यूज़” की रही है। लेकिन इस नीति पर पुनर्विचार की बात भी हाल के वर्षों में हो चुकी है।
परमाणु युद्ध की आशंका भले ही बहुत दूर की बात लगे, लेकिन अगर नियंत्रण रेखा पर टकराव बढ़ता है और दोनों देश रक्षात्मक स्थिति से आक्रामक स्थिति में आते हैं, तो हालात तेजी से बिगड़ सकते हैं।
9. वैश्विक असर: सिर्फ भारत-पाकिस्तान की बात नहीं
भारत और पाकिस्तान के बीच कोई भी सैन्य संघर्ष सिर्फ दो देशों तक सीमित नहीं रहेगा। चीन, जो पाकिस्तान का करीबी सहयोगी है, उसकी प्रतिक्रिया भी महत्वपूर्ण होगी। अफगानिस्तान में स्थिरता की कोशिशें, ईरान-इजरायल संकट और रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते दुनिया पहले से ही अस्थिर है। ऐसे में एक और एशियाई युद्ध वैश्विक संकट को और गहरा कर सकता है।
10. निष्कर्ष: आने वाले दिन निर्णायक होंगे
भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में यह एक और ‘टर्निंग पॉइंट’ है। सवाल यही है—क्या यह टकराव युद्ध का रूप लेगा, या कूटनीति फिर एक बार युद्ध को रोक लेगी? पहलगाम का हमला केवल एक घटना नहीं है, यह उस लंबे संघर्ष की अगली कड़ी है जो दशकों से चलता आ रहा है।
भारत अब न सिर्फ प्रतिक्रिया देने की स्थिति में है, बल्कि रणनीतिक रूप से निर्णायक कार्रवाई करने की तैयारी में भी है। पाकिस्तान अगर अपने रुख में बदलाव नहीं लाता, तो इस बार परिणाम लंबे समय तक असर डालने वाले हो सकते हैं।
जब बारूद की गंध हवा में घुलने लगे, जब सियासी बयान तलवार की धार बन जाएं, और जब सेना की चालें मोर्चे पर बदलने लगें—तो समझ लीजिए कि युद्ध सिर्फ एक फैसला दूर है। भारत और पाकिस्तान के लिए अब समय है—या तो शांति की मजबूत बुनियाद रखने का, या फिर इतिहास के सबसे खतरनाक अध्याय की ओर बढ़ने का।
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