पंकज कपूर : एक आवाज़ की यात्रा

यह कहानी उस अभिनेता की है, जिसने न सिर्फ़ सिनेमा बल्कि थिएटर और टेलीविजन के क्षेत्र में भी अपनी एक खास पहचान बनाई। पंकज कपूर का नाम सुनते ही एक ऐसे कलाकार की छवि सामने आती है, जो हमेशा अपनी शर्तों पर काम करने के लिए जाना जाता है। लेकिन उनकी यह यात्रा आसान नहीं रही। एक समय था जब इस अभिनेता ने अपनी आवाज़ के लिए एक सिनेमा के महान निर्देशक से लेकर अपनी नौकरी तक को दांव पर लगाया था। यह कहानी उस समय की है, जब पंकज कपूर ने ‘गांधी’ फिल्म में गांधी जी की आवाज़ दी, और इसके बाद उनका जीवन एक नए मोड़ पर खड़ा हो गया।
संघर्ष की शुरुआत

1970 के दशक की शुरुआत थी, जब पंकज कपूर ने 12वीं कक्षा के बाद अपने जीवन में एक बड़ा निर्णय लिया था – अभिनेता बनने का। उन्होंने अपने माता-पिता से कहा कि वह मुंबई जाना चाहते हैं, लेकिन उनकी मां की आँखों में आंसू थे। यह बात उन्होंने अपने पिता से साझा की। पंकज कपूर के पिता, जो एक प्रोफेसर थे, ने इस फैसले को पूरी तरह से समझा और पंकज को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। उनका कहना था, “अगर तुम्हारे अंदर टैलेंट है और तुम यह क्षेत्र चुनना चाहते हो, तो तुम जरूर जाओ, लेकिन सही तालीम के साथ।”

पंकज कपूर का अभिनय का सफर नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा (एनएसडी) से शुरू हुआ, जहाँ उन्होंने न केवल अभिनय के गुण सीखे, बल्कि अपने जीवन की दिशा भी तय की। वहीं, वह नसीरुद्दीन शाह और ओम पुरी जैसे महान अभिनेता बने, जिनसे पंकज ने बहुत कुछ सीखा। लेकिन उनका अभिनय का वास्तविक सफर कुछ और ही था।


गांधी’ फिल्म में आवाज़ का सफर

1982 में रिचर्ड एटनबरो की फिल्म ‘गांधी’ रिलीज़ हुई थी, जो एक क्लासिक फिल्म के रूप में जानी जाती है। इस फिल्म में बेन किंग्सले ने महात्मा गांधी का किरदार निभाया था, लेकिन गांधी की आवाज़ पंकज कपूर ने दी थी। पंकज कपूर की यह कहानी तब शुरू हुई जब वह ‘मुख्यमंत्री’ नामक नाटक कर रहे थे, जिसमें उन्होंने मुख्यमंत्री के सचिव का रोल किया था। नाटक के दौरान उनकी आवाज़ ने रिचर्ड एटनबरो का ध्यान खींच लिया और उन्हें पंकज को ऑडिशन देने का मौका मिला।

पंकज कपूर ने अपनी आवाज़ के लिए नटराज स्टूडियो में ऑडिशन दिया, जिसमें उन्होंने शेक्सपियर की दो पंक्तियाँ बोलीं, ताकि एटनबरो को यह समझ में आ सके कि वह एक पढ़े-लिखे व्यक्ति हैं। उनकी आवाज़ में कुछ खास था, और एटनबरो ने तुरंत उन्हें शॉर्टलिस्ट कर लिया। इसके बाद, पंकज कपूर को बीआर स्टूडियो में बुलाया गया और वहां उन्होंने गांधी जी के एक कठिन दृश्य की डबिंग की। यह दृश्य गांधी जी के उपवास के दौरान का था, जब वह बोलने में भी कठिनाई महसूस कर रहे थे। पंकज की आवाज़ को सुनते ही एटनबरो ने तय कर लिया कि यही वह आवाज़ है जो गांधी जी को जीवंत करेगी।

लेकिन इस यात्रा ने पंकज कपूर की ज़िंदगी को कठिन बना दिया। जब वह फिल्म की डबिंग में व्यस्त थे, तो उनकी थियेटर की नौकरी को लेकर एक समस्या उठी। शुरुआत में तो उन्हें काम करने की अनुमति दी गई थी, लेकिन जैसे-जैसे उनका काम बढ़ता गया, उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया। पंकज कपूर ने इसके बाद मुंबई का रुख किया, और यहां उनका साथ उनके दोस्त ओम पुरी ने दिया।
मुंबई में नई शुरुआत

मुंबई में कदम रखते ही पंकज कपूर के सामने एक नई दुनिया खुली। ओम पुरी ने उन्हें श्याम बेनेगल की फिल्म ‘आरोहण’ में काम दिलवाया, और यहीं से पंकज कपूर की हिंदी सिनेमा में यात्रा शुरू हुई। यह समय पंकज के लिए एक नई शुरुआत था, जहाँ उन्हें अपनी पहचान बनाने का मौका मिला।
सफलता की ओर

पंकज कपूर ने हमेशा अपनी शर्तों पर काम किया। उन्होंने कभी किसी फिल्म में बिना स्क्रिप्ट के काम नहीं किया, और इसी कारण कई बड़ी फिल्मों को छोड़ दिया। उनका मानना था कि किसी भी फिल्म में काम करने से पहले उसके बारे में पूरी जानकारी होनी चाहिए। हालांकि, इस वजह से बहुत से लोग उनसे नाराज भी हुए, लेकिन पंकज कपूर ने कभी भी अपनी सोच को बदलने की कोशिश नहीं की।

टीवी की दुनिया में भी पंकज कपूर का योगदान बहुत अहम रहा। उन्होंने ‘ऑफिस ऑफिस’ जैसे शो से दर्शकों के दिलों में अपनी खास जगह बनाई। पंकज कपूर का मानना है कि थिएटर से जो तालीम मिली, वही उनके अभिनय की असली ताकत बनी। वह हमेशा कहते थे कि अगर सही तालीम हो, तो कोई भी अभिनेता अपनी पहचान बना सकता है।
समाज में बदलाव

समय के साथ पंकज कपूर ने समाज में हो रहे बदलावों का भी उल्लेख किया। उनका कहना था, “जब तक एक व्यक्ति अपनी सोच को ठीक रखने की कोशिश करे, तब तक समाज में बेहतरी की ओर जाने की संभावना है। लेकिन कट्टरपंथ से समाज को कभी भी कोई फायदा नहीं होता।” उनका यह मानना था कि चीजें जब अपने चरम पर पहुंचती हैं, तो उनका अंत भी होता है, और फिर कुछ नया निकलता है।

पंकज कपूर की यह कहानी न केवल एक अभिनेता की सफलता की कहानी है, बल्कि यह उस संघर्ष की कहानी है, जिसमें किसी ने अपनी आवाज़ के बल पर अपनी पहचान बनाई और समाज में बदलाव की दिशा में भी योगदान दिया।

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