टूटते रिश्तों का दर्द : एक प्रेम कहानी का दर्दनाक अंत

कोटा। कोटा की सड़कों पर हल्की धुंध थी। ट्रेन की पटरी के पास खड़ी एक लड़की चिल्ला रही थी—”रुको! मत जाओ!” लेकिन आवाज़ों से तेज़ एक ट्रेन थी, जो दिलराज मीणा की ज़िंदगी को अपने पहियों के नीचे रौंदने आ रही थी। कुछ ही पलों में सब खत्म हो गया… एक प्रेम कहानी, एक संघर्ष, एक जीवन।

“आज ससुर आ रहा है, दामाद को मारने…” यह वॉट्सऐप स्टेटस दिलराज ने सुबह ही लगाया था। क्या कोई समझ पाया कि उसके शब्दों में कितना दर्द छुपा था? शायद नहीं। क्योंकि समाज तब तक जागता नहीं, जब तक कोई चला नहीं जाता।

एक साल पहले का प्यार, आज के आंसू
दिलराज और उसकी पत्नी की लव मैरिज हुई थी। दोनों कोटा में अपने सपनों को पूरा करने के लिए मेहनत कर रहे थे। मगर शादी के बाद की जटिलताएँ, पारिवारिक तनाव और समाज की नज़रों में ‘इज्जत’ बचाने की लड़ाई ने इस रिश्ते को एक बोझ बना दिया। क्या प्यार के लिए इतना बड़ा बलिदान देना ज़रूरी था?

उसकी पत्नी रोती रही, उसे रोकती रही। मगर शायद दिलराज के अंदर की तकलीफ इतनी गहरी थी कि वह किसी की आवाज़ नहीं सुन पा रहा था।

समाज को कब समझ आएगा?
यह सिर्फ दिलराज की कहानी नहीं है। यह उन हजारों युवाओं की कहानी है, जिनका प्यार सामाजिक बंधनों में उलझकर दम तोड़ देता है। परिवार के झगड़े किसी की जान से ज्यादा अहम हो जाते हैं। क्यों नहीं हम अपने बच्चों को मानसिक संबल देते? क्यों नहीं हम रिश्तों को स्वीकार करने की ताकत रखते? अगर प्यार करते हैं, तो उसे निभाने के लिए हौसला भी रखिए, न कि समाज के डर से उन्हें अकेला छोड़ दीजिए।

एक सवाल छोड़ गया दिलराज
आज दिलराज नहीं रहा, मगर एक सवाल छोड़ गया—क्या किसी की जान से ज्यादा कोई परिवार की ‘इज्जत’ बड़ी हो सकती है? अगर दिलराज के साथ कोई खड़ा होता, कोई उसका दर्द समझता, कोई उसे कहता कि “तुम अकेले नहीं हो,” तो शायद आज वह जिंदा होता।

अब भी वक्त है—रिश्तों को समझने की कोशिश कीजिए। कहीं ऐसा न हो कि कल किसी और की चीखें भी ट्रेन की आवाज़ में दब जाएँ।

अगर आप या आपका कोई करीबी मानसिक तनाव से जूझ रहा है, तो चुप न रहें। बात करें, मदद लें। क्योंकि जिंदगी से बड़ा कुछ नहीं।

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