राजनीति का एक अनदेखा चेहरा : गुलाबचंद कटारिया की रणनीति

उदयपुर। जब राजनीति की बात होती है, तो अक्सर वही दिखता है जो सामने होता है, लेकिन असल राजनीति वही है, जो पर्दे के पीछे होती है। हाल ही में उदयपुर बीजेपी के नए जिलाध्यक्षों की नियुक्ति ने राजनीति के इस गहरे खेल को और भी स्पष्ट कर दिया है। इस नियुक्ति के बाद गुलाबचंद कटारिया का नाम फिर से चर्चा में आया है। यह चर्चा केवल उनके नए जिलाध्यक्षों के बारे में नहीं, बल्कि इस बात पर भी है कि आखिर कटारिया की सियासत कमजोर हुई या नहीं?

किसी भी राजनीतिक शख्सियत को कमजोर समझना अक्सर एक भूल साबित होता है। पत्रकारिता के 25 साल के अनुभव के आधार पर मैं कह सकता हूं कि गुलाबचंद कटारिया को राजनीति में नजरअंदाज करना आसान नहीं है। जैसे अमिताभ बच्चन की फिल्म कालिया में यह डायलॉग था, “हम जहां खड़े होते हैं, लाइन वहीं से शुरू होती है,” सियासत में वैसे ही कटारिया की स्थिति है। विरोध के बावजूद उनका नाम और उनकी मौजूदगी अभी भी उदयपुर की राजनीति में एक महत्वपूर्ण जगह रखती है।

यह केवल एक हार नहीं, बल्कि एक तरह से उनकी जीत भी है। कटारिया का सियासी खेल इस वक्त शतरंज की बाजी की तरह है, जहां राजा की भूमिका में वो खुद हैं। और एक राजा अपनी सियासत को बचाने के लिए किसी भी मोहरे को शहीद करवा सकता है। जिलाध्यक्ष की नियुक्ति के इस मौके पर सियासी बाजी अब भी कटारिया के हाथों में है। उन्होंने जो चालें चली हैं, वो इस बात को साबित करती हैं कि उन्हें किसी भी मोहरे का त्याग करने में संकोच नहीं होता।

कटारिया का विधायक ताराचंद जैन पर भरोसा भी इस खेल का एक अहम हिस्सा है। जैन के साथ उनका संबंध मजबूत है और यही वजह है कि कटारिया अपने फैसलों को लागू करने में उन्हें पूरी तरह से अपनी ओर खींच सकते हैं। कटारिया का यह कदम केवल अपने राजनीतिक नेटवर्क को मजबूत करने का एक साधन है। जिलाध्यक्ष, विधायक और मंडल अध्यक्षों को फील्ड में उतारने के लिए यह कदम और भी सटीक है।

“कटारिया की राजनीति का मतलब कभी हार नहीं, बल्कि नई सियासी भूमिकाएं बनाना है।”

गुलाबचंद कटारिया की सियासत में अभी बहुत कुछ बाकी है, और उनकी रणनीतियां सामने आने में वक्त लगेगा। परन्तु एक बात स्पष्ट है—उनकी राजनीति कभी हल्की नहीं होगी, क्योंकि उनके खेल में हर कदम सोचा-समझा हुआ होता है।

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