मध्यप्रदेश में दो कत्ल और एक सवाल : क्या औरत होना अब भी खता है?

 

भोपाल। कभी सोचा है कि एक लड़की जो ज़िंदगी बचाने के ख्वाब लिए नर्सिंग की ट्रेनिंग कर रही हो, वो ख़ुद एक सरकारी अस्पताल की दहलीज़ पर गला काटकर मार दी जाए? और वो भी ऐसे कि सामने खड़े लोग वीडियो बना रहे हों, लेकिन कोई उसे बचाने आगे न बढ़े?

या फिर, एक औरत जो अपने ही आशिक़ के साथ एक किराए के कमरे में रह रही हो — भरोसे के नाम पर, मुहब्बत के नाम पर — और वही आदमी उसे शक और शराब के नशे में मार दे। और फिर उस लाश के साथ दो दिन उसी कमरे में जीता रहे।

मध्य प्रदेश ने बीते हफ्ते दो ऐसे वाक़ियात देखे हैं जिनसे ये सवाल एक बार फिर ज़ोर से चीख़ने लगा है — क्या औरत होना अब भी एक ख़ता है?

पहला वाक़िया नरसिंहपुर ज़िले का है। 27 जून, दिन के क़रीब 3 बजे, ज़िला अस्पताल के इमरजेंसी वॉर्ड के सामने एक सत्रह साल की लड़की की चाकू से गला काट कर हत्या कर दी गई। न सिर्फ़ ये कत्ल कैमरे में कैद हुआ, बल्कि सोशल मीडिया पर वायरल भी हो गया। अफ़सोस इस बात का नहीं कि ये वीडियो सामने आया, अफ़सोस इस बात का है कि उस वक़्त वहां कोई मदद को नहीं आया।

पुलिस ने बताया कि क़ातिल अभिषेक, जो लड़की से इंस्टाग्राम पर दो साल पहले मिला था, पिछले सात दिन से उसका पीछा कर रहा था। लड़की ने उससे दूरी बना ली थी। वह अब उस लड़के से बात नहीं करना चाहती थी। लेकिन ‘ना’ सुनना शायद उस लड़के को कभी सिखाया ही नहीं गया था। इसलिए उसने उस ना को ग़ुस्से, जुनून और हिंसा में बदल डाला।

लड़की के घरवालों की आंखें आज भी सूखी नहीं। उसके चाचा मीडिया वालों से बात करते हुए रो पड़े — “हमारी भतीजी की क्या ग़लती थी? उसने कभी किसी को ऊँची आवाज़ में जवाब तक नहीं दिया। उसे नर्स बनना था।” उनकी आवाज़ में सवाल थे, ग़ुस्सा था, और बेबसी थी। “इतने बड़े अस्पताल में चाकू लेकर कोई कैसे घुस गया? और जब हमला हुआ, तो कोई गार्ड, कोई पुलिसवाला क्यों नहीं आया? क्या उसकी ज़िंदगी इतनी सस्ती थी?”

अस्पताल प्रशासन कहता है कि उनके पास 18 सुरक्षा गार्ड हैं, लेकिन हर जगह तैनात नहीं रह सकते। सिक्योरिटी एजेंसी का टेंडर रद्द किया जा रहा है। लेकिन सवाल फिर वही — क्या इससे वो लड़की वापस आ जाएगी?

भोपाल में दूसरी कहानी एक दूसरी दुनिया की है — लेकिन अंजाम उतना ही स्याह। यहां बजरिया थाना क्षेत्र में सचिन राजपूत नाम का युवक अपनी लिव-इन पार्टनर के साथ रह रहा था। वो बेरोज़गार था, शराब पीता था, और अपनी पार्टनर पर शक करता था। 27 जून की रात झगड़ा हुआ, और उसने अपनी साथी का गला घोंट दिया।

लेकिन कत्ल यहीं ख़त्म नहीं हुआ। इसके बाद वह दो दिन उसी कमरे में उस लाश के साथ रहा। और इस दौरान शराब पीता रहा — शायद अपने गुनाह से भागने की कोशिश कर रहा था, या शायद उसे कोई पछतावा ही नहीं था।

इन दो औरतों की मौतों के बाद अब सिर्फ़ एक सवाल बाक़ी रह गया है — क्या हम सिर्फ़ खबरों के हेडलाइन पढ़कर आगे बढ़ जाएंगे, या कभी रुक कर पूछेंगे कि आख़िर यह सिलसिला कब रुकेगा?

मध्य प्रदेश के आंकड़े डराते हैं। 2024 में रोज़ाना औसतन 20 बलात्कार दर्ज हुए। सिर्फ़ बलात्कार ही नहीं, घरेलू हिंसा, पीछा करना, ऑनर किलिंग — और अब लिव-इन पार्टनर द्वारा हत्या। 2020 में जहां 6,134 रेप केस दर्ज हुए, 2024 में वो बढ़कर 7,294 हो गए। राज्य महिला आयोग के पास 50 हज़ार से ज़्यादा शिकायतें लंबित हैं। और विडंबना देखिए — 2020 से लेकर अब तक आयोग की संयुक्त बेंच की एक भी बैठक नहीं हुई है।

बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक जब महिला एवं बाल विकास विभाग से बात करने की कोशिश की तो अधिकारी बोले — “मैं इस पर बोलने के लिए अधिकृत नहीं हूं।” जनसंपर्क अधिकारी ने कहा कि “हमने हर ज़िले में वन स्टॉप सेंटर बनाए हैं, और ‘शौर्य दल’ नाम की परियोजना चला रहे हैं।” पर उन योजनाओं की ज़मीनी सच्चाई क्या है — इस पर कोई बोलने को तैयार नहीं।

बरकतउल्लाह यूनिवर्सिटी की समाजशास्त्र प्रोफ़ेसर अनीता धुर्वे मीडिया से बात करते हुए बताती हैं, “इन अपराधों के पीछे एक ही वजह नहीं है। बेरोज़गारी, पारिवारिक विघटन, मीडिया का अपराध को रोमांच की तरह दिखाना, ये सब मिलकर युवा मानसिकता को ग़लत दिशा में ले जा रहे हैं। आज का नौजवान सोशल मीडिया से रिश्ते बनाता है, रील्स से सोचता है, और जब रिश्तों में ठोकर लगती है, तो वो उसे हार नहीं, अपमान समझता है। फिर या तो खुद को खत्म करता है, या सामने वाले को।”

उनका मानना है कि हमें स्कूलों में रिश्तों की समझ, इमोशनल इंटेलिजेंस और रिजेक्शन को स्वीकार करना सिखाना होगा। वरना ये ‘थ्रिल’ वाली सोच हमें एक-एक करके खा जाएगी।

तो अब सवाल ये नहीं कि अगली हत्या कहां होगी। सवाल यह है कि हम सब — समाज, सरकार, मीडिया और परिवार — अपनी आंखें खोलने को तैयार हैं या नहीं?

क्योंकि अगर अस्पताल में लड़की महफ़ूज़ नहीं, अगर घर में उसकी ज़िंदगी सुरक्षित नहीं, तो फिर किस मंजर का इंतज़ार है?

क्या हमें हर बार एक और लाश चाहिए, एक और वायरल वीडियो, एक और प्रेस कांफ्रेंस — ताकि हम फिर कुछ दिन तक बहस करें, ट्वीट करें और फिर भूल जाएं?

या फिर अब वक़्त आ गया है — ख़ामोशी तोड़ने का, सिस्टम झकझोरने का, और सबसे बढ़कर, एक ऐसी दुनिया बनाने का जहां औरत की जान किसी पुरुष की मर्ज़ी पर नहीं, उसकी अपनी हिफ़ाज़त और इज़्ज़त पर टिकी हो।

 

About Author

Leave a Reply