
YouTube : Gen-Z की नई ‘टेलीविज़न आदत’, हर दिन 1 अरब घंटे से अधिक व्यूइंग
डिजिटल मीडिया की दुनिया में YouTube ने पारंपरिक टेलीविज़न को पीछे छोड़ते हुए एक अलग साम्राज्य खड़ा कर दिया है। दुनियाभर में 2.5 अरब से अधिक मासिक दर्शकों और रोज़ाना 1 अरब घंटे से ज्यादा व्यूइंग के साथ यह प्लेटफ़ॉर्म आज Gen-Z के जीवन का स्थायी हिस्सा बन चुका है।
2005 में लॉन्च और 2006 में Google द्वारा 1.65 अरब डॉलर में खरीदे गए इस प्लेटफ़ॉर्म पर शुरुआती सवाल यह थे कि क्या यह टेरेस्ट्रियल टीवी को रिप्लेस कर पाएगा। दो दशक बाद, विशेषज्ञों का मानना है कि YouTube ने केवल टीवी की जगह नहीं ली, बल्कि उसने कंटेंट की एक बिल्कुल नई दुनिया जन्म दी— ASMR, वीडियो निबंध, व्लॉगिंग, रिएक्शन वीडियो, मुकबैंग और वोडकास्ट जैसे फ़ॉर्मेट अब वैश्विक डिजिटल संस्कृति का हिस्सा हैं।
स्ट्रीमिंग सर्विसेज़ से आगे YouTube
स्ट्रीमिंग प्लेटफ़ॉर्म्स की लगातार बढ़ती लोकप्रियता के बीच YouTube सबसे ज़्यादा देखा जाने वाला प्लेटफ़ॉर्म बनकर उभर रहा है। युवा दर्शकों का रुझान लंबे टीवी कार्यक्रमों से हटकर 6–10 मिनट के हाई-रिटेंशन कंटेंट की ओर बढ़ा है।
लंदन और न्यूयॉर्क जैसे शहरों में किए गए डिजिटल सर्वे बताते हैं कि 25–34 आयु वर्ग के उपभोक्ता YouTube को “बैकग्राउंड मीडिया” की तरह इस्तेमाल करते हैं— यानी काम, खाना, सफ़र या जिम में हमेशा कुछ न कुछ वीडियो चलते रहना।
एल्गोरिदम: क्यूरेटेड कंटेंट या क्यूरेटेड बुलबुला?
YouTube की सबसे बड़ी ताकत इसका पर्सनलाइज़्ड एल्गोरिदम है, जो यूज़र के पैटर्न के आधार पर कंटेंट सुझाव देता है। लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि यही एल्गोरिदम “माइक्रो-कल्चर” और “एल्गोरिदमिक बबल” भी बना रहा है, जिसमें लोग अलग-अलग कंटेंट वर्ल्ड में बंट रहे हैं।
बीबीसी के डिजिटल कल्चर विश्लेषकों के अनुसार, पिछली पीढ़ियों की तरह अब “कल रात क्या देखा?” जैसा साझा अनुभव कम हो गया है। इसके स्थान पर हर यूज़र अपने एल्गोरिदम के हिसाब से बिल्कुल अलग दुनिया में डूबा रहता है।
युवा पुरुषों के बीच बना रहा है ‘मोनोकल्चर’
जहां ज्यादातर दर्शक ऑनलाइन अलग-अलग माइक्रो-कल्चर्स में बंटे हुए हैं, वहीं युवा पुरुष दर्शकों में जो रोगन, लेक्स फ्रिडमैन और थियो वॉन जैसे पॉडकास्टरों का एक समान प्रभाव देखा जा रहा है।
डिजिटल विश्लेषकों का कहना है कि यह समूह YouTube पर एक तरह का “पॉप-इंटेलेक्चुअल मोनोकल्चर” बना रहा है, जो समाजिक और राजनीतिक राय को प्रभावित कर रहा है।
प्रीमियम सब्सक्रिप्शन का बढ़ता उपयोग
महामारी के बाद YouTube Premium की सब्सक्रिप्शन में तेजी से बढ़ोतरी हुई। विज्ञापन-मुक्त अनुभव और ऑफ़लाइन स्मार्ट डाउनलोड्स ने इसे मोबाइल-फर्स्ट दर्शकों की पहली पसंद बना दिया है।
‘YouTube जीत चुका है’ – विशेषज्ञों का निष्कर्ष
डिजिटल मीडिया विश्लेषकों के अनुसार, टीवी गाइड, चैनल शेड्यूल या सामूहिक व्यूइंग का दौर अब अतीत बन चुका है।
YouTube न केवल मनोरंजन बल्कि शिक्षा, कौशल, समाचार, विश्लेषण और राजनीति पर भी भारी प्रभाव डाल रहा है। हालांकि, विशेषज्ञ यह भी चेतावनी देते हैं कि संतुलन आवश्यक है— क्योंकि अनियंत्रित उपभोग मानसिक और सामाजिक प्रभाव डाल सकता है।
2) फ़ीचर स्टोरी
YouTube: वह स्क्रीन जो अब कभी बंद नहीं होती
जब 2005 में YouTube लॉन्च हुआ था, किसी ने नहीं सोचा था कि एक वेबसाइट इंसानी जीवन के बैकग्राउंड म्यूजिक जैसी बन जाएगी। लेकिन Gen-Z के लिए YouTube अब वही है— न कोई चैनल नंबर, न कोई समय-सारणी, बस अनंत कंटेंट की बहती नदी, जो जागने से लेकर सोने तक उनके साथ चलती है।
“मेरी मां हर कमरे में रेडियो 4 चलाती थीं। मैं हर कमरे में YouTube चलाता हूं।”
यह वाक्य किसी एक युवक का नहीं, बल्कि एक पूरी पीढ़ी की नई मीडिया आदत का प्रतीक है।
वीडियो की दुनिया, जो टीवी से कहीं आगे निकल गई
Google ने जब 2006 में YouTube को 1.65 अरब डॉलर में खरीदा, आलोचकों ने इसे “ओवरप्राइस्ड” कहा था। लेकिन लगभग 20 साल बाद, YouTube केवल टीवी का विकल्प नहीं, बल्कि उसके समानांतर एक नई मीडिया संस्कृति बन चुका है।
यहाँ वीडियो सिर्फ़ मनोरंजन नहीं—
- लोग ASMR सुनते-सुनते सोते हैं,
- व्लॉग देखते हुए खाना खाते हैं,
- वीडियो निबंधों से दुनिया समझते हैं,
- और रिएक्शन वीडियो के जरिए हँसते हैं।
फिल्म निर्देशकों से लेकर स्कूल के छात्रों तक—हर कोई YouTube पर अपना स्टेज ढूंढ चुका है।
एक ऐसी ऐप जो आदतों को बदल देती है
यात्रा के दौरान, जिम में, रात के खाने पर—YouTube हर जगह है।
प्रीमियम सब्सक्रिप्शन ने विज्ञापन की रुकावटें हटा कर इसे और भी नींद, भोजन और दिनचर्या का हिस्सा बना दिया है।
कुछ लोगों के लिए यह प्रेरणा भी बन रहा है—
शॉर्ट्स में आ रहे गिटार क्लिपों ने हजारों युवाओं को फिर से संगीत की ओर लौटने पर मजबूर किया है।
कई लोग पहले कभी न सोच पाए हों, लेकिन अब डॉक्यूमेंट्री, स्पोर्ट्स इंडेप्थ एनालिसिस और फिल्म स्टडीज़ तक आराम से 10-15 मिनट में सीख लेते हैं।
कंटेंट की आज़ादी, लेकिन साथ में एल्गोरिदम की कैद
YouTube का एल्गोरिदम आपको वही दिखाता है जो आप पसंद करते हैं—but धीरे-धीरे वो भी, जो आप देखते रहते हैं।
यहीं से शुरू होती है वह बहस, जिसने डिजिटल समाजशास्त्र को चिंता में डाल दिया है।
हर यूज़र अलग “बुलबुले” में जी रहा है—
- एक देखता है फुटबॉल एनालिसिस,
- दूसरा राजनीति के तीखे पॉडकास्ट,
- तीसरा जापानी अर्बन प्लानिंग।
एक ही शहर में रहने वाले दो पड़ोसियों की देखने की आदतें पूरी तरह अलग हो सकती हैं—लेकिन वही यूज़र कहीं दूसरे देश में रहने वाले अपरिचित व्यक्ति से ज्यादा मेल खा सकता है।
युवा पुरुषों की एक नई डिजिटल बिरादरी
Gen-Z पुरुषों में एक खास प्रवाह दिखाई दे रहा है—जो रोगन, लेक्स फ्रिडमैन, ट्रंप जैसे पॉलिटिकल टॉक और हाई-इंटेंसिटी चर्चाओं में उनकी रुचि लगातार बढ़ रही है।
विशेषज्ञों का कहना है कि यह “यंग मेल मोनोकल्चर” कई मामलों में विचारधारा और सामाजिक भाषण को प्रभावित कर रहा है।
यह दिक्कत इसलिए बढ़ रही है क्योंकि एल्गोरिदम धीरे-धीरे ऐसे कंटेंट की तीव्रता बढ़ाता जाता है— कभी-कभी मनोरंजन से गलत सूचनाओं तक बिना महसूस कराए ले जाता है।
‘बैलेंस खो गया है’ — डिजिटल पीढ़ी की स्वीकारोक्ति
इंटरनेट एक्सपर्ट्स मानते हैं कि YouTube ने दुनिया को देखने का तरीका बदल दिया है— लेकिन यह बदलाव हमेशा सरल नहीं।
लोग कम सोचते हैं, अधिक देखते हैं।
कम रुकते हैं, अधिक स्क्रॉल करते हैं।
यही कारण है कि शोधकर्ता आज इस नई पीढ़ी पर इसका मनोवैज्ञानिक असर मापने की कोशिश कर रहे हैं।
परिणाम? YouTube अब केवल एक ऐप नहीं—एक संस्कृति है
YouTube ने टीवी की जगह नहीं ली। उसने टीवी को अप्रासंगिक बना दिया है।
जहाँ पहले लोग अखबार या टीवी गाइड देखकर तय करते थे कि रात में क्या देखना है, आज एक 10 मिनट का वीडियो निबंध उन्हें बता देता है कि उन्हें सोचना क्या है।
फिलहाल, यही आधुनिक मीडिया की सच्चाई है—YouTube जीत चुका है, और शायद हमारा समय भी।
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