
उदयपुर। तेज अंधड़ ने जब इतिहास को गिरा दिया, तो शहर की भावनाएं भी हिल गईं। सुखाड़िया सर्कल पर वर्षों से खड़ी आधुनिक राजस्थान के निर्माता और पूर्व मुख्यमंत्री मोहनलाल सुखाड़िया की धातु निर्मित प्रतिमा शुक्रवार रात आंधी के कहर में धराशायी हो गई। शनिवार सुबह जब शहरवासियों ने यह दृश्य देखा, तो हर तरफ अफसोस और आक्रोश की लहर दौड़ गई।
प्रतिमा टूटी, सियासत जुड़ी : प्रतिमा गिरने की जानकारी मिलते ही कांग्रेस शहर अध्यक्ष फतेह सिंह राठौड़ अपने कार्यकर्ताओं के साथ मौके पर पहुंचे। उन्होंने इसे प्रशासन की लापरवाही बताया और विरोध दर्ज कराया।
कुछ समय बाद भाजपा विधायक ताराचंद जैन नगर निगम की गैराज शाखा पहुंचे, जहां टूटी हुई प्रतिमा को क्रेन से उठाकर रखा गया था। उन्होंने निगम अभियंता मुकेश पुजारी से बात की और प्रतिमा की स्थिति का जायजा लिया।
विधायक जैन ने साफ निर्देश दिए — “यदि प्रतिमा को मूल स्वरूप में ठीक किया जा सकता है तो मरम्मत करवाई जाए, अन्यथा नई प्रतिमा बनवाकर फिर से उसी स्थान पर स्थापित की जाए।”
इतिहास की गरिमा, धातु में ढली थी भावना : यह वही प्रतिमा है जिसका अनावरण 18 जुलाई 1989 को भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति आर. वेंकटरमण ने किया था। यह प्रतिमा सिर्फ एक सार्वजनिक स्मारक नहीं, बल्कि राजस्थान के नव निर्माण की गवाही देती है।
प्रशासन की त्वरित कार्रवाई : नगर निगम ने मूर्ति को गैराज शाखा से हटाकर पुरोहितों की मादड़ी स्थित फायर स्टेशन में अस्थायी तौर पर सुरक्षित रखवा दिया है, ताकि किसी तरह की और क्षति से बचाया जा सके।
एक स्मारक गिरा… सवाल खड़े कर गया :
इस हादसे ने प्रशासन को एक बार फिर यह सोचने पर मजबूर कर दिया है —
क्या हमारी सांस्कृतिक और राजनीतिक धरोहरें केवल समारोहों तक सीमित रह गई हैं? क्या स्मारकों की देखभाल सिर्फ फोटो खिंचवाने और अनावरण के दिन तक की जाती है?
“जब धातु की मूर्ति भी वक़्त की मार नहीं झेल सकी, तो इंसानी ज़िम्मेदारी कितनी मजबूत है – इस पर बहस होनी चाहिए…”
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