
प्रतापगढ़। आंखों में डर, चेहरे पर थकान और दिल में घर लौटने की आस… यही हाल था उन 53 आदिवासी मजदूरों का, जिन्हें बेहतर ज़िंदगी का सपना दिखाकर महाराष्ट्र के शोलापुर जिले में बंधक बना लिया गया था। महीनों तक वे अमानवीय यातनाओं, भूख, डर और अपमान के साये में जीने को मजबूर थे। लेकिन जब उम्मीदें टूटने लगी थीं, तभी प्रतापगढ़ पुलिस उनके लिए भगवान बनकर पहुँची।
यह कहानी है उन मासूम लोगों की, जिन्हें मजदूरी का झांसा देकर घर से दूर ले जाया गया। इंदौर में अच्छी मजदूरी, मुफ्त खाना और रहने का वादा कर दलालों ने उन्हें अपने जाल में फंसा लिया। मगर सच्चाई इससे कहीं ज़्यादा दर्दनाक थी। उन्हें गन्ने के खेतों में जानवरों की तरह काम करवाया गया, मजदूरी नहीं दी गई, और विरोध करने पर मारपीट की गई। महिलाओं के साथ भी अमानवीय व्यवहार किया गया। कई रातें भूखे पेट और डर के साए में गुज़रीं।
कुछ मजदूर किसी तरह वहां से भाग निकले, लेकिन 13 महिलाएं और 40 पुरुष अब भी कैद थे — उम्मीद और हिम्मत के सहारे ज़िंदा।
जब पुलिस बनी उम्मीद की किरण
22 दिसंबर 2025 को जैसे ही यह पीड़ा भरी सूचना प्रतापगढ़ पुलिस तक पहुँची, जिला पुलिस अधीक्षक बी. आदित्य ने बिना देर किए कार्रवाई के निर्देश दिए। अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक श्री गजेन्द्र सिंह जोधा के मार्गदर्शन में थाना घंटाली के उप निरीक्षक श्री सोहनलाल के नेतृत्व में एक टीम महाराष्ट्र रवाना हुई।
जो देखा, वो दिल दहला देने वाला था — भूखे चेहरे, थकी आंखें और टूटी हुई उम्मीदें। लेकिन पुलिस की मौजूदगी ने जैसे उनमें फिर से जान भर दी। कठिन हालातों के बावजूद टीम ने साहस और संवेदनशीलता के साथ 53 मजदूरों को अलग-अलग जगहों से रेस्क्यू किया।
खाली हाथ, लेकिन सुरक्षित घर वापसी
मजदूरों के पास न पैसे थे, न खाने की व्यवस्था। ऐसे में पुलिस ने इंसानियत का परिचय देते हुए स्थानीय जनप्रतिनिधियों और नागरिकों की मदद से भोजन, पानी और यात्रा की व्यवस्था करवाई। सभी को सुरक्षित प्रतापगढ़ लाया गया, जहां उनके चेहरे पर पहली बार सुकून दिखाई दिया।
न्याय की शुरुआत
इस अमानवीय कृत्य के लिए थाना घंटाली में प्रकरण संख्या 128/2025 दर्ज कर लिया गया है। दलालों और दोषियों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई की जा रही है। सभी मजदूरों को उनके घरों तक सुरक्षित पहुंचाया जा रहा है।
यह सिर्फ एक रेस्क्यू नहीं था…
यह भरोसे की वापसी थी।
यह इंसानियत की जीत थी।
प्रतापगढ़ पुलिस ने एक बार फिर साबित कर दिया —
“आमजन में विश्वास, अपराधियों में भय।”
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