उदयपुर। झीलों की नगरी… लेकिन यहां की नाइटलाइफ़ का दूसरा चेहरा अचानक सुर्खियों में आ गया। शहर के चर्चित आरडीएक्स क्लब एंड बार में हुई मारपीट ने न केवल पीड़ितों को भयभीत कर दिया, बल्कि पुलिस प्रशासन की कार्यशैली पर भी गंभीर सवाल खड़े कर दिए। एक तरफ बाउंसरों का बेरहम व्यवहार, दूसरी तरफ थाने में ड्यूटी ऑफिसर की लापरवाही। और जब मामला मीडिया व सोशल मीडिया में उछला तो पुलिस हरकत में आई। एसपी योगेश गोयल ने न केवल 5 आरोपियों को गिरफ्तार किया, बल्कि एएसआई सुनील बिश्नोई को हटाकर विभागीय जांच भी बैठा दी।
यह सिर्फ एक मारपीट की घटना नहीं है, बल्कि यह कहानी है—पुलिस तंत्र की कमज़ोरियों, शहर के क्लब कल्चर की अंधेरी दुनिया और सिस्टम पर बढ़ते अविश्वास की।
घटना की रात : मिनट-दर-मिनट घटनाक्रम
भुवाणा क्षेत्र का आरडीएक्स क्लब एंड बार हमेशा की तरह रौनक से भरा था। कमलेश पालीवाल अपने पांच दोस्तों—मोहित, मिलन, विकास, सोनू और रोहित—को लेकर क्लब पहुंचे। दिल्ली से आए दोस्तों का स्वागत करना था, और रात का मज़ा उठाना था।
क्लब से बाहर निकलने का समय आया। थकान और नशे के बीच सभी लिफ्ट की ओर बढ़े। तभी विवाद की चिंगारी सुलगी। लिफ्ट की क्षमता 6 लोगों की थी। पहले से भरी लिफ्ट में बार स्टाफ से जुड़े एक युवक ने भी घुसने की कोशिश की। कमलेश और उनके दोस्तों ने उसे रोक दिया—“भाई, लिफ्ट फुल है, तुम अगली में आ जाओ।”
इतना कहना था कि उस युवक ने इस ‘ना’ को अपनी बेइज़्ज़ती समझ लिया।
जैसे ही वे ग्राउंड फ्लोर पहुंचे, उनका सामना क्लब मैनेजर मुकेश सिंह और बाउंसरों के झुंड से हुआ। बिना किसी बातचीत के, लात-घूंसे और घेरकर मारपीट शुरू हो गई। सीसीटीवी फुटेज में साफ़ दिखा कि बाउंसरों ने उन्हें बेरहमी से पीटा।
पीड़ितों ने हिम्मत जुटाई और थाने का रुख किया। उन्हें उम्मीद थी कि पुलिस उनकी मदद करेगी। लेकिन हुआ उल्टा। ड्यूटी ऑफिसर एएसआई सुनील बिश्नोई ने उनकी शिकायत सुनने के बजाय मामला टाल दिया। कथित तौर पर उन्होंने पीड़ितों की शिकायत दर्ज करने के बजाय केवल तीन युवकों को “पाबंद” कर दिया। यानी असली अपराधियों पर कोई कार्रवाई नहीं।
यह वही पल था, जिसने पूरी कहानी का रुख बदल दिया। अगर उस समय पुलिस ईमानदारी से कार्रवाई कर देती, तो शायद मामला इतना बड़ा नहीं बनता।
मारपीट का सीसीटीवी फुटेज बाहर आया। लोगों ने देखा कि कैसे बाउंसर युवकों को घेरकर पीट रहे हैं। वीडियो वायरल हुआ, स्थानीय मीडिया ने खबर उठाई और पुलिस प्रशासन पर सवाल खड़े होने लगे।
सवालों के दबाव में एसपी योगेश गोयल ने तुरंत एक्शन लिया। एएसआई सुनील बिश्नोई को सुखेर थाने से हटाकर डीएसपी ऑफिस वेस्ट अटैच कर दिया गया। बिश्नोई से लिखित जवाब-तलब किया गया और विभागीय जांच शुरू हुई।
क्लब प्रबंधन और बाउंसरों के खिलाफ अश्लीलता परोसने और मारपीट करने के आरोप में एफआईआर दर्ज की गई।
5 आरोपियों को गिरफ्तार किया गया, इनमें मुकेश सिंह (क्लब मैनेजर, निवासी राजसमंद), लोकेश कुमार प्रजापत (बाउंसर, निवासी ब्यावर), पंकज पूर्बिया (निवासी प्रतापनगर), विश्वजीत सिंह (निवासी नागा नगरी), धर्मेंद्र सिंह (निवासी कर्नाटक)।
उदयपुर जैसे शहर में, जहां पर्यटन और पारंपरिक संस्कृति एक पहचान है, वहां क्लब कल्चर धीरे-धीरे बढ़ रहा है। लेकिन इसके साथ ही बाउंसर हिंसा, ड्रग्स, और अश्लीलता जैसे आरोप भी बार-बार सामने आते हैं।
स्थानीय लोगों का कहना है कि कई क्लबों में कानून से ज्यादा ‘पर्सनल सिक्योरिटी’ का राज चलता है। बाउंसर अक्सर ग्राहकों पर हावी रहते हैं, और छोटे विवाद को भी हिंसा में बदल देते हैं।
यह घटना कोई पहला मामला नहीं है। राजस्थान में अक्सर यह देखने को मिला है कि बाउंसर हिंसा या क्लब विवादों में पुलिस शुरुआत में उदासीन रवैया अपनाती है।
लोगों का आरोप है कि क्लब मालिक और मैनेजर पुलिस से ‘सांठगांठ’ रखते हैं, इसलिए कार्रवाई में देरी होती है।
सवाल यह भी है कि जब सीसीटीवी फुटेज इतना साफ़ था, तब एएसआई ने तुरंत केस क्यों नहीं दर्ज किया?
कमलेश पालीवाल बताते हैं—“हम दिल्ली से आए दोस्तों को घुमाने ले गए थे। सोचा कि क्लब में मज़ा करेंगे। लेकिन वहां हमें इस तरह पीटा गया कि जान बचाकर भागना पड़ा। थाने गए तो वहां भी मदद नहीं मिली। हमें लगा पुलिस हमारी रक्षा करेगी, पर उल्टा हमें ही पाबंद कर दिया गया।”
घटना के बाद उदयपुर के युवाओं और परिवारों में क्लब कल्चर को लेकर डर और अविश्वास बढ़ गया है। कई अभिभावकों ने कहा कि ऐसे क्लब बच्चों को गलत रास्ते पर ले जा रहे हैं। वहीं, स्थानीय व्यापारियों का मानना है कि इस तरह की घटनाओं से पर्यटन पर भी नकारात्मक असर पड़ता है।
आरडीएक्स क्लब कांड ने यह साबित कर दिया कि—बाउंसरों की गुंडागर्दी आम लोगों की सुरक्षा के लिए खतरा है। पुलिस की शुरुआती लापरवाही से अपराधियों के हौसले और बढ़ जाते हैं। जब तक मीडिया और जनता दबाव नहीं बनाती, प्रशासन अक्सर कार्रवाई में देर करता है।
यह कहानी सिर्फ एक क्लब की मारपीट तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पूरे सिस्टम की उस खामोशी को उजागर करती है, जो अपराध को पनपने देती है।
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