उदयपुर। भारतीय नववर्ष केवल एक पर्व नहीं, बल्कि वैभव, ज्ञान और सांस्कृतिक गौरव का प्रतीक है। भारतीय कालगणना के आधार पर चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को सृष्टि की रचना हुई थी, यही कारण है कि यह दिन भारतीय नववर्ष के रूप में मनाया जाता है। इस अवसर पर उदयपुर में 28 से 30 मार्च तक तीन दिवसीय भव्य आयोजन किया जा रहा है, जिसमें शोभायात्रा, सांस्कृतिक कार्यक्रम, भजन संध्या और विशाल भगवा युवा वाहन रैली का आयोजन होगा।
भारतीय नववर्ष समाजोत्सव समिति के संरक्षक रमेश शुक्ल ने बुधवार को होटल हिस्टोरिया रॉयल में आयोजित प्रेस वार्ता में बताया कि विक्रम संवत की गणना खगोलीय आधार पर की गई है, जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित है।
नववर्ष की ऐतिहासिक और वैज्ञानिक प्रासंगिकता : भारतीय कालगणना के आधार पर यह तिथि सर्वाधिक सटीक मानी जाती है। महान गणितज्ञ भास्कराचार्य ने भी इसे पंचांग गणना का आधार बनाया था। इस दिन को ऐतिहासिक और धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जाता है—भगवान श्रीराम और सम्राट युधिष्ठिर ने इसी दिन राजसत्ता संभाली थी। सम्राट विक्रमादित्य ने विदेशी आक्रमणकारियों को हराकर विक्रम संवत की शुरुआत की। चैत्र नवरात्र का प्रारंभ भी इसी दिन से होता है, जो शक्ति आराधना का पर्व माना जाता है।
तीन दिवसीय भव्य आयोजन की रूपरेखा
▶ 28 मार्च : शुभारंभ घोषवादन से – विभिन्न मंदिरों में भव्य शंखनाद किया जाएगा।
▶ 28 मार्च (सायंकाल) : नगर निगम प्रांगण में स्थानीय प्रतिभा प्रकटीकरण कार्यक्रम।
▶ 29 मार्च : विशाल भगवा युवा वाहन रैली, जिसमें शहर के हजारों युवा शामिल होंगे।
▶ 30 मार्च : भव्य शोभायात्रा और भजन संध्या, जिसमें प्रसिद्ध भजन गायक प्रकाश माली अपनी प्रस्तुति देंगे।
संस्कार और संस्कृति की जीवंत झांकियां : इस शोभायात्रा में भारतीय संस्कृति और गौरव को दर्शाने वाली कई झांकियां शामिल होंगी—अहिल्याबाई होल्कर की सेवा और समरसता। ग्राम विकास एवं पर्यावरण संरक्षण। नागरिक कर्तव्य बोध और भारत की प्रगति। प्रयागराज महाकुंभ और स्वावलंबन संदेश।
इस आयोजन में महंत इंद्रदेव दास, गुलाबदास महाराज, सुदर्शनाचार्य महाराज जैसे संतों का सान्निध्य प्राप्त होगा।
भारतीय नववर्ष : हमारी संस्कृति का अभिन्न हिस्सा
रमेश शुक्ल ने कहा कि आज की युवा पीढ़ी को भारतीय नववर्ष के महत्व को समझाने की जरूरत है। औपनिवेशिक शिक्षा पद्धति ने हमें अपनी जड़ों से दूर कर दिया है, लेकिन अब समय आ गया है कि हम अपनी वैज्ञानिक और सांस्कृतिक धरोहर को पुनः विश्व पटल पर प्रतिष्ठित करें।
उदयपुर में होने वाले इस आयोजन से न केवल सांस्कृतिक धरोहर को बल मिलेगा, बल्कि यह नवपीढ़ी के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बनेगा। आयोजकों ने जन-जन से इस आयोजन में शामिल होने का आह्वान किया है।
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