
जयपुर की उस सड़क पर बाइक सरपट दौड़ रही थी। हवा की ठंडक थी, मगर बाइक पर बैठे दोनों लोगों के दिलों में नफरत और खौफ का उबाल था। एक प्लास्टिक के बोरे में बंधी हुई लाश उनके साथ थी—एक इंसान का बेजान जिस्म, जिसे कभी प्यार और भरोसे की डोर से बांधा गया था। लेकिन आज वही जिस्म धोखे, लालच और जुनून की आग में झुलसने जा रहा था।
जब प्यार ने लिया खूनी मोड़
धन्नालाल सैनी… 40 साल का एक सीधा-साधा आदमी, जिसे ज़िंदगी से ज्यादा अपनी पत्नी गोपाली से प्यार था। मगर गोपाली के दिल में अब उसके लिए कोई जगह नहीं बची थी। उसके दिल का कोना किसी और के लिए धड़कने लगा था—दीनदयाल, जो पिछले 15 सालों से उसकी ज़िंदगी का “छुपा हुआ सच” था। धन्नालाल सब जानता था, मगर उम्मीद करता था कि वक्त के साथ सब ठीक हो जाएगा। लेकिन वह नहीं जानता था कि वक्त उसके लिए मौत लेकर आ रहा है।
15 मार्च की शाम धन्नालाल अपनी पत्नी से मिलने निकला था। उसे शक था कि उसकी पत्नी का अफेयर चल रहा है। उसी शक को मिटाने के लिए वह सांगानेर की उस दुकान पर पहुंचा, जहां गोपाली ने कहा था कि वह काम करती है। यह दुकान किसी और की नहीं, बल्कि दीनदयाल की थी—वही दीनदयाल, जिसके साथ उसकी पत्नी पिछले डेढ़ दशक से जुड़ी थी।
मौत की दुकान
धन्नालाल के कदम जैसे ही दुकान के अंदर पड़े, उसकी क़िस्मत पर मौत की मुहर लग चुकी थी। गोपाली और दीनदयाल ने उसकी आंखों में शक की परछाईं देख ली थी। अब वह जिंदा नहीं रह सकता था। उन्होंने उसे बहाने से दुकान के ऊपर वाले कमरे में बुलाया। वहां पहले से ही मौत उसका इंतजार कर रही थी—लोहे का पाइप, एक रस्सी और दो खूनी इरादे।
जैसे ही धन्नालाल ऊपर पहुंचा, उसके सिर पर लोहे की पाइप से वार किया गया। वह चीख भी नहीं सका कि अचानक उसकी गर्दन पर रस्सी कस दी गई। उसकी सांसें उखड़ने लगीं। उसकी आंखों में वही औरत थी, जिसे उसने अपनी ज़िंदगी का हिस्सा बनाया था। मगर इस वक्त वह औरत उसकी मौत की सौदागर बन चुकी थी। कुछ ही मिनटों में धन्नालाल की धड़कनें हमेशा के लिए थम गईं।
बाजार से मौत का सफर
शाम के धुंधलके में बाजार गुलजार था। लोग खरीदारी में मशगूल थे, सड़कें चहल-पहल से भरी थीं। लेकिन कोई नहीं जानता था कि उन्हीं भीड़भाड़ वाली गलियों से एक बाइक गुज़र रही थी—पीछे एक बोरा बंधा हुआ था, जिसमें एक इंसान का शव था। बाइक पर गोपाली अपने प्रेमी के पीछे बैठी थी, जैसे किसी जीत की खुशी मना रही हो।
सीसीटीवी कैमरों ने देखा कि दोनों किसी साधारण मुसाफिर की तरह गुजर रहे थे। मगर उनके चेहरे की शिकन, उनकी तेज़ रफ्तार और उनके साथ बंधा हुआ बोरा उनके अपराध की गवाही दे रहा था।
रिंग रोड नेवटा पुलिया के पास जंगल में पहुंचते ही उन्होंने बाइक रोकी। अंधेरे में चारों ओर सन्नाटा था। उन्होंने बोरा नीचे गिराया और उसमें आग लगा दी। धधकती लपटों में धन्नालाल का जिस्म राख बन गया। शायद गोपाली और दीनदयाल को लगा होगा कि अब कोई सुराग बाकी नहीं रहेगा। लेकिन किस्मत के पास भी अपने खेल होते हैं।
सीसीटीवी फुटेज: प्यार का सबूत या कत्ल की निशानी?

पुलिस ने जैसे ही उस इलाके के सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगाली, तो उन्हें एक बाइक दिखी—उसी पर सवार थे गोपाली और दीनदयाल। वीडियो ने दोनों के खूनी खेल का पर्दाफाश कर दिया। पुलिस की टीम अलग-अलग ठिकानों पर पहुंची, और 19 मार्च को गोपाली और दीनदयाल सलाखों के पीछे थे।
इश्क में धोखा, धोखे में मौत
गोपाली का कहना था कि वह अपने पति से प्यार नहीं करती थी। वह दीनदयाल के साथ रहना चाहती थी। मगर क्या किसी के साथ रहने के लिए किसी और की जान लेना जरूरी था? धन्नालाल की मासूम आंखों में आखिरी पल तक सिर्फ एक ही सवाल था—”क्यों?”
लेकिन इस “क्यों” का जवाब शायद खुद गोपाली के पास भी नहीं था। शायद यह इश्क का जुनून था, या लालच, या वह धोखा जो उसने खुद को भी दिया था। मगर अब जब वह जेल की सलाखों के पीछे थी, तो क्या उसे उस “आजादी” का एहसास हो रहा था, जिसके लिए उसने अपने पति की ज़िंदगी का सौदा कर दिया था?
इश्क जब जुनून बन जाए, तो वह सिर्फ दिल नहीं तोड़ता, जिंदगियां भी तबाह कर देता है। और इस कहानी में इश्क ने एक घर उजाड़ दिया, एक मासूम की सांसें छीन लीं, और दो लोगों को ऐसी अंधेरी राह पर डाल दिया, जहां से अब सिर्फ पछतावे की गूंज सुनाई देगी…
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