डॉक्टर डेथ : एक पुजारी, जो 100 हत्याओं का सौदागर



दौसा के मंदिर से खुला खौफनाक राज


मंदिर की घंटियों की आवाज़, धूप-दीप से गूंजता एक शांत-सा आश्रम, और पुजारी के वेश में बैठा एक बुजुर्ग—कोई सोच भी नहीं सकता था कि यह शख्स कभी 100 से ज्यादा हत्याएं कर चुका है। लेकिन दिल्ली पुलिस के एक मोबाइल रिचार्ज की तहकीकात ने राजस्थान के दौसा में छुपे इस राक्षस को बेनकाब कर दिया। ये कहानी है डॉ. देवेंद्र शर्मा की—एक डॉक्टर, जो किडनियों का सौदागर था, टैक्सी ड्राइवरों का काल और पुलिस को बार-बार मात देने वाला शातिर दिमाग।

डॉक्टर से जल्लाद बनने की शुरुआत

1984 में शादी और 1995 तक जयपुर व दौसा में सफल आयुर्वेदिक डॉक्टर की पहचान रखने वाले देवेंद्र की जिंदगी 1994 में तब बदली, जब उसने एक गैस कंपनी में 11 लाख का निवेश किया और ठग लिया गया। पैसा डूबा, तो उसने शॉर्टकट तलाशा—किडनी रैकेट में एंट्री ली।

1994 से 2002 तक उसने गैरकानूनी तरीके से 125 से ज्यादा किडनी ट्रांसप्लांट कराए। हर ट्रांसप्लांट से वह 5 से 7 लाख रुपए कमाता। मगर सिर्फ अंग व्यापार ही काफी नहीं था। अपराध की लत लग चुकी थी। वह अब टैक्सी ड्राइवरों की हत्या कर टैक्सियां बेचने वाले गैंग से जुड़ चुका था।

जयपुर के दो भाइयों की गुमशुदगी से शुरू हुआ भयानक पर्दाफाश

18 जनवरी 2004—जयपुर रेलवे स्टेशन के बाहर एक शख्स, जो खुद को “डॉ. मुकेश खंडेलवाल” बताता था, टाटा सूमो बुक करता है। गंतव्य: हापुड़, उत्तर प्रदेश।

ड्राइवर चांद खां और उसका भाई शराफत खां साथ निकलते हैं। रास्ते में दौसा के पास एसटीडी बूथ से अपने पिता को फोन करते हैं, और फिर हमेशा के लिए गायब हो जाते हैं। गफ्फार खां शिकायत दर्ज कराते हैं। एक साधारण गुमशुदगी की जांच ने इतिहास का रुख मोड़ दिया।

लैंडलाइन कॉल से जुड़ा कातिल

दौसा के महुआ स्थित एसटीडी बूथ से न सिर्फ भाइयों ने, बल्कि एक तीसरे शख्स—डॉक्टर देवेंद्र—ने भी कॉल किया था। ये कॉल यूपी के कासमपुर में रहने वाली एक महिला को किया गया था। महिला ने बताया कि कॉल राजू रजवा और उदयवीर नामक लोगों के लिए था। यहीं से पुलिस को हत्यारे गैंग की कड़ियां मिलने लगीं।

जब नहर ने उगले शव

तलाश के दौरान यूपी के एटा में गंगा नहर से दो अज्ञात शव बरामद होते हैं। पुलिस उन्हें अंतिम संस्कार कर देती है, लेकिन सामान सुरक्षित रखती है। मार्च 2004 में गफ्फार खां इन सामानों की पहचान करते हैं—घड़ी, कंबल, और कुछ निजी वस्तुएं। अब यह गुमशुदगी नहीं, हत्या का केस बन चुका था।

कातिल जेल में और पुलिस ठगी सी

राजू और उदयवीर की गिरफ्तारी के बाद, पुलिस को पता चला कि असली मास्टरमाइंड देवेंद्र शर्मा पहले से यूपी की जेल में एक अन्य मामले में बंद है। पूछताछ हुई, मगर डॉक्टर ने कहानी रच दी—रंजिश में किसी और ने हत्या की। केस ठंडा पड़ने लगा था कि जेल का एक कैदी काजी सावेश सामने आया।

उसने बताया—”जिसे तुम मासूम समझ रहे हो, वही तो हत्यारा है। वो रोज पुलिस का मज़ाक उड़ाता है, कहता है कि सबको बेवकूफ बना दिया।”

मारने में मजा आता है—सुनकर सन्न रह गई पुलिस
फिर सख्ती से हुई पूछताछ में डॉक्टर ने जो कहा, वो किसी हॉरर फिल्म से कम नहीं था। “मैंने दोनों भाइयों को पीछे सीट पर बैठाकर बेल्ट से गला घोंटा। फिर शव फेंक दिए। मगरमच्छों को खिला दिए। सबूत तक नहीं बचा। मुझे गला घोंटना अच्छा लगता है।”

2002 से 2004 के बीच उसने कम से कम 100 हत्याएं कीं। फिर गिनती करना ही छोड़ दी।

टैक्सी, ड्राइवर और मगरमच्छ—मौत की फैक्ट्री

डॉ. शर्मा एक तय पैटर्न पर काम करता था :

रेलवे स्टेशन या बस स्टैंड से टैक्सी बुक करता।

सुनसान जगह ले जाकर ड्राइवर की हत्या करता।

शव को नहर में मगरमच्छों को खिला देता।

गाड़ी को कासगंज या मेरठ में 20-25 हजार में बेच देता।

उसका दावा था कि हर हत्या उसके लिए एक “मनोवैज्ञानिक सुकून” जैसा था। कोई पछतावा नहीं, कोई खेद नहीं।

सजा और फिर एक और धोखा

2018 में जयपुर कोर्ट ने देवेंद्र, उदयवीर और राजू को आजीवन कारावास की सजा सुनाई। पर कहानी खत्म नहीं हुई।

2020 में जयपुर सेंट्रल जेल से उसे 20 दिन की पैरोल मिली और वह फरार हो गया। दिल्ली में छिपकर एक विधवा से शादी कर प्रॉपर्टी डीलिंग करने लगा। आखिरकार दिल्ली पुलिस की नारकोटिक्स सेल ने उसे पकड़ लिया।

लेकिन फिर भी… जून 2023 में तिहाड़ जेल से पैरोल मिली और अगस्त 2023 में एक बार फिर फरार हो गया।

आश्रम में साधु और पुलिस की आखिरी चाल

डॉ. देवेंद्र अब दौसा के एक आश्रम में “पुजारी” बन गया था। बाल सफेद, चेहरे पर तिलक, और मुंह से धार्मिक उपदेश। लेकिन एक मोबाइल नंबर ने फिर से उसकी पहचान उधेड़ दी।

दिल्ली पुलिस ने एक मामूली मोबाइल रिचार्ज को ट्रेस कर उसे पकड़ लिया। इस बार वह कोई कहानी नहीं सुना पाया।

क्या सिस्टम भी हत्यारा है?


डॉ. देवेंद्र शर्मा सिर्फ एक अपराधी नहीं था, वह सिस्टम की कमजोरियों का जीता-जागता प्रतीक था। एक डॉक्टर, जो मरीज बचाने की बजाय उनका शिकार करता था। एक फरार, जो बार-बार जेल से बाहर आता और दोबारा गायब हो जाता। ऐसे अपराधी न केवल कानून को चुनौती देते हैं, बल्कि हमारे सामाजिक तंत्र की गंभीर खामियों को भी उजागर करते हैं।

“डॉक्टर डेथ” की कहानी खत्म हो गई है, लेकिन सवाल अब भी जिंदा हैं—क्या फिर कोई देवेंद्र इस सिस्टम में पनप रहा है?

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