उदयपुर। राज्य के शिक्षामंत्री मदन दिलावर विवादित बयान देकर सुर्खियां बंटोर रहे हैं, उन्हें अब कोई भी बयान देने से पहले राजस्थान पत्रिका के शनिवार यानी 22 जून 2024 के अंक में प्रकाशित संपादक गुलाब कोठारी का संपादकीय जरूर पढ़ना चाहिए। पेपर लीक की घटनाएं जिस प्रकार देश के लिए नासूर बन चुकी है…ऐसे में क्या शिक्षामंत्री बयान किसी भी दृष्टिकोण से सही ठहराए जा सकते हैं। मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा को भी आने मंत्रिमंडल विस्तार से पहले पत्रिका के संपादकीय को जरूर पढ़ना चाहिए और इस बात पर मंथन करना चाहिए कि राज्य के शिक्षा मंत्री कैसा हो?
शिक्षामंत्री मदन दिलावर ने आदिवासियों के हिंदू होने पर जो बयान दिया है, उसको कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष ने उनकी बीमारी मानसिकता का परिचायक बताया है। जवाब में शिक्षामंत्री ने भी डोटासरा पर पेपर लीक करवाने, बिकवाने के आरोप लगाए हैं और उनके जल्दी ही जेल जाने की बात कही है। राजस्थान पत्रिका के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी ने भी यही लिखा है-सरकारें कितनी भी बदल जाएं, लेकिन सिस्टम नहीं बदल रहा है।
केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेद्र प्रधान काफी गंभीर है, लेकिन नीट-यूजी की परीक्षा और परिणाम को लेकर अपनी बात पर अड़े रहे। मामला बढ़ा, पेपर आउट होने के सबूत सामने आने लगे तो उन्हें अपनी गलती स्वकार करनी पड़ी। मदन दिलावर जिस प्रकार से बयान दे रहे हैं, उन्हें इस बात पर विचार करना चाहिए कि राजधानी दिल्ली से लेकर देशभर की सड़कों पर युवा पेपर लीक और परीक्षाओं के लिए किस प्रकार संघर्ष कर रहे हैं।
केंद्र सरकार ने गंभीरता बरतते हुए एनटीए के महानिदेशक सुबोध कुमार को हटाना पड़ा। नीट-पीजी की परीक्षा को रद्द करना पड़ा। इसको लेकर भी केंद्र सरकार की आलोचना हो रही है। नेट का एग्जाम पहले ही रद्द किया जा चुका है।
इस मुद्दे पर कोठारी ने लिखा है-शिक्षा एवं स्वास्थ्य विभाग में जो पेपर लीक के मामले बढ़ रहे हैं, वे नियोजित हैं। करोड़ों छात्रों का भविष्य दांव पर है। होगा, इनकी बला से। सड़कें पुल दो महीने चलें, कोई मरे- इनकी बला से। नकली अंग प्रत्यारोपण-नकली दवाइयां झूठे टेस्ट – झूठे क्लेम – कमीशनखोरी जैसे नैतिक मुद्दे बन गए आज। कागज के टुकड़े बटोरने – माफिया का पेट भरने – जनता को पंगु बनाने के लिए ही सब जी-जान से जुटे हैं। लोकतंत्र के तीनों पाए बदनामी सुनकर सिर भले ही नीचा कर लें, अपने देशवासियों का सम्मान नहीं करेंगे। उनके धन से पेट पालते हैं, उनकी ही पीठ पर छुरा घोंपते हैं। भले ही इनके खुद के बच्चे भी प्रभावित हों। पिछले पांच साल में पन्द्रह राज्यों में 41 से ज्यादा परीक्षाएं रद्द हुई हैं। लगभग डेढ़ करोड़ बच्च्चों का भविष्य प्रभावित हुआ है। कितने अधिकारी-नेता गुलछर्रे उड़ा रहे होंगे। यह हमारा लोकतंत्र है, हमारी चुनी हुई सरकारें हैं। हमारा ही गला घोंट रही हैं। अपनों को मूर्ख बनाकर ठगने में गर्व महसूस करते हैं।
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