
सिरोंज (अजमेर)। राजस्थान की साबिक़ वज़ीरे आला वसुंधरा राजे ने एक मर्तबा फिर सियासत के रंग बदलते मिज़ाज पर गहरा तंज़ किया है। अजमेर ज़िले के सिरोंज गांव में साबिक़ वज़ीर स्व. प्रो. सांवरलाल जाट की मूर्ति के अनावरण के मौके़ पर उन्होंने न सिर्फ़ उन्हें ख़िराज-ए-अक़ीदत पेश किया, बल्कि मौजूदा सियासी दौर पर भी दिल की बात बयाँ की।
राजे ने इस मौके़ की तस्वीरें और जज़्बाती अल्फ़ाज़ अपने एक्स (पहले ट्विटर) अकाउंट पर साझा करते हुए लिखा :
“मौसम और इंसान कब बदल जाए, कोई भरोसा नहीं। आजकल सियासत में लोग नई दुनिया बसा लेते हैं, एक चेहरे पर कई चेहरे लगा लेते हैं। मगर प्रो. सांवरलाल जाट ऐसे नहीं थे। वो आख़िरी सांस तक मेरे साथ रहे।”
“राजनीति में वफ़ादारी अब किताबों में रह गई है”
राजे के इस बयान को महज़ एक श्रद्धांजलि के तौर पर नहीं, बल्कि समकालीन राजनीति पर एक तल्ख़ टिप्पणी भी माना जा रहा है। उन्होंने न सिर्फ़ प्रो. जाट की सादगी, वफ़ादारी और उसूलों की तारीफ़ की, बल्कि ये भी जताया कि आज के सियासतदां उस दर्जे की शख्सियत से बहुत दूर हैं।
“भैरों सिंह शेखावत साहब, प्रो. जाट और डॉ. दिगंबर सिंह जैसे लोग अब सियासत में कम ही मिलते हैं। ये तीनों मेरी मदद के लिए हर वक़्त तैयार रहते थे। प्रो. जाट मेरे जैसे ही भैरों सिंह जी की सियासी तालीमगाह के तालिबेइल्म थे।”
“दिल नहीं था चुनाव में, पर फिर भी लड़े – और जीते”
राजे ने बताया कि प्रो. जाट अजमेर से लोकसभा चुनाव लड़ना नहीं चाहते थे। “उनकी ख्वाहिश नहीं थी, लेकिन पार्टी का हुक्म मानते हुए उन्होंने चुनाव लड़ा – और फतह भी हासिल की। ये उनके अंदर के अनुशासन और इताअत का सुबूत था।”
उन्होंने याद करते हुए कहा कि जब 2018 में किसानों का ₹50,000 तक का क़र्ज़ माफ़ किया गया, अगर उस वक़्त प्रो. जाट होते, तो उन्हें बेहद सुकून मिलता।
बीसलपुर से चंबल तक – एक अधूरा ख़्वाब
राजे ने इस बात पर ज़ोर दिया कि अजमेर में बीसलपुर परियोजना के पानी को लाने का श्रेय सीधे तौर पर प्रो. जाट को जाता है। “उनका सपना था कि चंबल बेसिन का पानी बीसलपुर बांध में डाला जाए। हमने 2018 में ERCP की शुरुआत की, जिससे उनका ख़्वाब मुकम्मल हो सके।”
उन्होंने याद दिलाया कि प्रो. जाट के इंतेक़ाल पर वज़ीरे आज़म नरेंद्र मोदी ने इसे भाजपा और मुल्क के लिए एक “बड़ी रुक्सती” बताया था।
“रमज़ और रिश्ता निभा रहे हैं रामस्वरूप लांबा”
राजे ने इस मौक़े पर प्रो. जाट के बेटे और मौजूदा विधायक रामस्वरूप लांबा की भी तारीफ़ की। “वो अपने वालिद की सोच और खिदमत के जज़्बे को आगे बढ़ा रहे हैं। मैं उनसे उम्मीद करती हूँ कि वो भी अपने वालिद की तरह वफ़ादार और सच्चे रहेंगे।”
सियासत का बदलता चेहरा और वसुंधरा का इशारा
राजे का यह बयान सियासत में गिरते उसूलों, निष्ठा और एहतेराम की कमी की तरफ़ इशारा करता है। उनका लहजा साफ़ था – आज की सियासत में चेहरों की अदला-बदली, हक़ीक़त से ज़्यादा मुखौटों का दौर है। प्रो. जाट जैसे लोग, जिन्होंने आख़िरी वक़्त तक ईमानदारी और वफ़ादारी के साथ काम किया, अब नज़रों से ओझल हो गए हैं।
“मौसम और इंसान कब बदल जाए… कोई भरोसा नहीं।”
— इस एक जुमले ने सियासत के दोहरे मयार, बदलते रवैये और रिश्तों में आती बर्फ़ की परछाईयों को बेनकाब कर दिया है।
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