
बरसात ने उजागर कर दी “स्मार्ट सिटी” की हकीकत-गलत योजना, ढीला प्रबंधन और कराहता किसान
लेखक : भगवान प्रसाद गौड़, उदयपुर
बेमौसम बरसात ने एक बार फिर हमारे तथाकथित विकास की सच्चाई उजागर कर दी। हम गर्व से ‘स्मार्ट सिटी’, ‘मॉडर्न इंफ्रास्ट्रक्चर’ और ‘तेज़ विकास’ की बातें करते हैं, लेकिन कुछ घंटों की बारिश में इन सभी दावों की पोल खुल जाती है। सड़कों पर झीलें, गलियों में नदियाँ और घरों में घुसा पानी यह तस्वीर किसी प्राकृतिक आपदा की नहीं, बल्कि मानव निर्मित अव्यवस्था की कहानी कहती है।
उदयपुर से लेकर दिल्ली, जयपुर और अहमदाबाद तक—हर शहर की स्थिति लगभग एक जैसी है। जहाँ कभी पानी निकासी के लिए नाले बहते थे, वहाँ अब मकान और शॉपिंग कॉम्प्लेक्स खड़े हैं। पहाड़ काटकर कॉलोनियाँ बसीं, नदियों के बहाव पर सड़कें बिछीं, और पेड़ों की जगह कंक्रीट के जंगल उग आए। इस तथाकथित आधुनिकता ने शहरों को ‘जीवंत व्यवस्था’ से ‘दम घुटती बस्तियों’ में बदल दिया है।
बारिश अब राहत नहीं, भय बन गई है। कुछ घंटे की तेज़ बारिश में करोड़ों की लागत से बनी सड़कें उखड़ जाती हैं। नालों की सफाई का दावा करने वाला प्रशासन खुद कीचड़ में फंसा नजर आता है। विकास के नाम पर योजनाओं की फाइलें तो बनती हैं, लेकिन ज़मीन पर उनकी वास्तविकता हर बरसात उजागर कर देती है। शासन-प्रशासन और विकास पुरुषों के बड़े-बड़े दावे इस बार भी पानी में बह गए।
किसानों पर कहर बनकर बरसी बरसात
बेमौसम बरसात का सबसे बड़ा दर्द गांवों ने झेला है। खेतों में खड़ी फसलें चौपट हो गईं, तिलहन और सब्ज़ियों की बर्बादी से किसानों की सालभर की मेहनत मिट्टी में मिल गई। कहीं मक्का और ज्वार की खड़ी फसल खराब हो गई तो कहीं पशुओं का चारा सड़ गया।
किसान जो कभी आसमान की ओर प्रार्थना करता था, अब उसी बादल से डरता है कि पता नहीं कब बरसे और कब उजाड़ दे।
शहरों में जहां पानी असुविधा बनता है, वहीं गांवों में यह रोज़ी-रोटी लील जाता है। प्रशासनिक सर्वे और राहत घोषणाओं में जो दर्द दिखता नहीं, वो खेत की मिट्टी में दबा हर आह बयान करती है — “प्रकृति का संतुलन बिगड़ा है, और कीमत किसान चुका रहा है।”
यह केवल मौसमी परिवर्तन नहीं है। यह प्रकृति की सीधी चेतावनी है:“अब बहुत हो गया।” हमने जिस धरती से अनगिनत संसाधन लिए, उसे लौटाने का भाव खो दिया। हमने उसकी गोद को काटकर ही अपने घर बनाए, अब वही धरती जवाब दे रही है। बेमौसम बारिश, बढ़ती गर्मी, घटता भूजल, और बदलते मौसम चक्र सब उसी असंतुलन के परिणाम हैं जो हमने स्वयं रचा है।
आज सवाल यह नहीं कि बारिश क्यों हो रही है, बल्कि यह है कि बारिश होते ही शहर क्यों डूब जाते हैं और खेत क्यों उजड़ जाते हैं? जवाब साफ़ है — क्योंकि हमने बसावट को प्राथमिकता दी, पर निकास को भुला दिया। हमने विकास को गति दी, पर दिशा खो दी।
अब समय है कि हम विकास की नई परिभाषा गढ़ें। ऐसा विकास जो धरती के स्वास्थ्य और किसान के जीवन दोनों से जुड़ा हो। यह जिम्मेदारी सिर्फ़ शासन या प्रशासन की नहीं, बल्कि हर नागरिक की है। एक पेड़ लगाना, प्लास्टिक का उपयोग कम करना, जल को सहेजना यही सच्चे अर्थों में विकास की नींव है।
अगर हमने अब भी नहीं सीखा, तो आने वाले वर्षों में हमारा भविष्य डूबेगा।
और तब अगली पीढ़ियाँ शायद यही पूछेंगी
“जब धरती और किसान दोनों रो रहे थे, तब तुम क्या कर रहे थे?”
About Author
You may also like
-
उदयपुर में बारिश : फतहसागर और उदयसागर के गेट खोले, कोटड़ा के स्कूलों में अवकाश, खेतों में पानी भरा
-
Udaipur Weather Update: City Receives Continuous Rainfall for Two Days
-
बारिश का साज़, ठिठुरन का राग : राजस्थान में मौसम का इश्क़िया मिज़ाज
-
बारिश में भी नहीं थमा गुस्सा: उदयपुर में DSP के खिलाफ बाप कार्यकर्ताओं का प्रदर्शन, कार्रवाई की मांग तेज़
-
उदयपुर में जगमगाया शायराना दीपोत्सव : संगीत, शब्द और सुरों से महका ‘शायराना परिवार’ का दीपावली मिलन समारोह