राज कपूर : हिंदी सिनेमा के अमर “शोमैन” की जीवनी

परिचय

राज कपूर — जिन्हें प्रेमपूर्वक ‘शोमैन’ कहा जाता है — भारतीय सिनेमा के एक ऐसे दिग्गज अभिनेता, निर्माता और निर्देशक थे, जिनकी रचनात्मकता और दूरदृष्टि ने हिंदी फिल्म उद्योग को नई ऊंचाइयों तक पहुँचाया। वे न केवल अभिनय और निर्देशन में माहिर थे, बल्कि एक ऐसे संवेदनशील कहानीकार भी थे जिनकी फिल्में मानवीय भावनाओं, सामाजिक मुद्दों और राष्ट्रीय भावना से गहराई से जुड़ी थीं। सात फिल्मफेयर पुरस्कारों के विजेता और 1953 के कान फिल्म महोत्सव में ‘ग्रांड प्राइज़’ के लिए नामांकित राज कपूर भारतीय और विश्व सिनेमा के बीच सेतु का काम करने वाले दुर्लभ कलाकारों में गिने जाते हैं।

प्रारंभिक जीवन और पारिवारिक पृष्ठभूमि

राज कपूर का जन्म 14 दिसंबर 1924 को ब्रिटिश भारत के उत्तर-पश्चिम सीमांत प्रांत (वर्तमान पेशावर, पाकिस्तान) में हुआ था। उनके पिता, पृथ्वीराज कपूर, भारतीय थिएटर और सिनेमा के प्रतिष्ठित अभिनेता थे और माँ रमा देवी एक समर्पित गृहिणी थीं। राज कपूर, अपने परिवार में चार बच्चों में सबसे बड़े थे। वे प्रसिद्ध दीवान बशेश्वरनाथ कपूर के पोते और दीवान केशवमल कपूर के परपोते थे, जो पेशे से एक न्यायिक अधिकारी रहे थे।

उनके दो छोटे भाई — शम्मी कपूर और शशि कपूर — भी बाद में हिंदी सिनेमा के सफल अभिनेता बने। उनकी बहन उर्मिला सियाल, एक सम्मानित सामाजिक कार्यकर्ता रहीं। कपूर परिवार का संबंध मूलतः पंजाब (अब पाकिस्तान का फैसलाबाद) से था और वे हिंदू पठान मूल के थे।

करियर की शुरुआत और संघर्ष

राज कपूर ने किशोरावस्था में थिएटर और फिल्मों में कदम रखा। उन्होंने पृथ्वी थियेटर में अभिनय करते हुए रंगमंच की बारीकियाँ सीखीं। प्रारंभिक वर्षों में उन्होंने कई छोटी भूमिकाएँ निभाईं, परंतु 1947 में फिल्म ‘नील कमल’ में मधुबाला के साथ मुख्य भूमिका निभाकर उन्हें बड़ा ब्रेक मिला।

1948 में मात्र 24 वर्ष की उम्र में राज कपूर ने अपने खुद के बैनर ‘आर.के. फिल्म्स’ की स्थापना की और अपने निर्देशन करियर की शुरुआत ‘आग’ (1948) से की। यद्यपि ‘आग’ व्यावसायिक रूप से सफल नहीं रही, लेकिन इसने एक नए निर्देशक के आगमन का संकेत दिया — जो आने वाले वर्षों में हिंदी सिनेमा को नया रूप देने वाला था।

सफलता का स्वर्णिम दौर

1949 में राज कपूर ने फिल्म ‘बरसात’ बनाई, जो बॉक्स ऑफिस पर जबरदस्त हिट साबित हुई। इसी फिल्म का प्रसिद्ध पोस्टर — जिसमें नायक-नायिका बरसात में एक-दूसरे से सटे खड़े हैं — आज भी भारतीय सिनेमा का एक प्रतिष्ठित प्रतीक बना हुआ है।

प्रमुख सफल फिल्में:

  • आवारा (1951): यह फिल्म अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मशहूर हुई, खासकर सोवियत संघ और चीन में। राज कपूर की मासूम और संघर्षरत ‘आवारा’ की छवि ने वैश्विक दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया।
  • श्री 420 (1955): इसमें “मेरा जूता है जापानी” जैसे गीतों ने उन्हें आम आदमी के प्रतिनिधि के रूप में स्थापित किया।
  • चोरी चोरी (1956): रोमांटिक-कॉमेडी का बेहतरीन नमूना।
  • जिस देश में गंगा बहती है (1960): देशभक्ति के जज्बे से भरी यह फिल्म राज कपूर के सामाजिक सरोकारों को दर्शाती है।
  • संगम (1964): उनकी पहली रंगीन फिल्म और त्रिकोणीय प्रेम कहानी का उत्कृष्ट चित्रण।

1970 में उन्होंने अपनी महत्वाकांक्षी फिल्म ‘मेरा नाम जोकर’ बनाई, जिसे तैयार करने में छह वर्षों का समय लगा। यह फिल्म एक जोकर की व्यथा को दर्शाती है जो अपनी निजी वेदनाओं के बावजूद लोगों को हंसाता है। हालांकि यह फिल्म तत्काल सफल नहीं रही, बाद में इसे एक ‘कल्ट क्लासिक’ का दर्जा प्राप्त हुआ।

 

निर्देशक और निर्माता के रूप में योगदान

राज कपूर ने भारतीय सिनेमा में रचनात्मकता की नई मिसालें कायम कीं:

  • उन्होंने फिल्मों में सामाजिक मुद्दों, प्रेम, करुणा और संघर्ष को नई गहराई से दिखाया।
  • वे भारतीय सिनेमा के पहले फिल्मकारों में से थे जिन्होंने महिला किरदारों को केंद्र में रखकर शक्तिशाली कहानियाँ बुनीं।
  • ‘सत्यम शिवम सुंदरम’ (1978), ‘प्रेम रोग’ (1982) और ‘राम तेरी गंगा मैली’ (1985) जैसी फिल्मों में उन्होंने स्त्री संवेदनाओं को खूबसूरती से चित्रित किया।

राज कपूर ने कई प्रतिभाशाली सितारों को भी लॉन्च किया, जिनमें डिंपल कपाड़िया, मंदाकिनी, पद्मिनी कोल्हापुरी, और अपने बेटे ऋषि कपूर प्रमुख हैं।

व्यक्तिगत जीवन

1946 में, राज कपूर ने पारंपरिक तरीके से कृष्णा मल्होत्रा से विवाह किया। इस दंपति के पाँच संतानें हुईं — रणधीर कपूर, ऋषि कपूर, राजीव कपूर, रितु नंदा और रीमा जैन। उनके बेटे रणधीर, ऋषि और राजीव सभी ने हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में अपनी-अपनी पहचान बनाई।

कहा जाता है कि राज कपूर और उनकी कई नायिकाओं के बीच करीबी संबंध रहे, विशेषकर नरगिस और वैजयंतीमाला के साथ, जो एक दौर में काफी चर्चित रहे।

अंतिम समय और विरासत

राज कपूर को 1988 में फिल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित करते समय मंच पर ही अस्थमा का गंभीर दौरा पड़ा, जिसके बाद कुछ हफ्तों के भीतर, 2 जून 1988 को, 63 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया।

मृत्यु के समय वे ‘हिना’ फिल्म पर कार्य कर रहे थे, जिसे बाद में उनके बेटे रणधीर कपूर ने पूरा किया और फिल्म ने जबरदस्त सफलता हासिल की।

राज कपूर की यादें और उनका सिनेमा आज भी भारतीय सांस्कृतिक धरोहर का अमूल्य हिस्सा हैं। उन्होंने भारतीय सिनेमा को केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि सामाजिक परिवर्तन का सशक्त माध्यम भी बनाया।

राज कपूर महज़ एक अभिनेता या निर्देशक नहीं थे — वे एक सपनों के सौदागर थे, जिन्होंने भारतीय आम आदमी के दुख-सुख, प्रेम और संघर्ष को बड़े परदे पर जीवंत किया। ‘आवारा’, ‘श्री 420’, ‘मेरा नाम जोकर’ जैसी कालजयी फिल्मों के जरिए उन्होंने विश्वभर में भारतीय सिनेमा का परचम लहराया।

आज भी राज कपूर का नाम श्रद्धा, प्रेम और गर्व के साथ लिया जाता है। वे सच्चे मायनों में भारतीय सिनेमा के ‘शोमैन’ थे, हैं और रहेंगे।

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