“नौ तपा: शरीर, मौसम और जीवनशैली का संतुलन – डॉ. शोभालाल औदीच्य की आयुर्वेदिक दृष्टि”

हर वर्ष ज्येष्ठ माह के अंतिम चरण में सूर्य की तपिश चरम पर होती है। जब सूर्य नक्षत्र परिवर्तन करते हैं और रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश करते हैं, तभी आरंभ होता है “नौ तपा” – वह विशेष नौ दिन जब गर्मी अपने चरम पर होती है। इन दिनों को लेकर आयुर्वेद के विशेषज्ञ, वरिष्ठ आयुर्वेद चिकित्साधिकारी डॉ. शोभालाल औदीच्य का मानना है कि यह कालखण्ड केवल मौसम का परिवर्तन नहीं, बल्कि शरीर, मन और जीवनशैली के संतुलन की परीक्षा भी है।

क्या है नौ तपा?

नौ तपा यानी सूर्य के रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश से शुरू होने वाले 9 दिन,(25 मई से 2 जून तक) जो ज्येष्ठ मास के अंत से लेकर आषाढ़ मास के आरंभ तक चलते हैं। इस समय सूर्य पृथ्वी के अत्यंत समीप होता है, जिससे तापमान 45 डिग्री सेल्सियस से अधिक भी पहुँच जाता है। डॉ. औदीच्य कहते हैं, “आयुर्वेद में इसे अतितीव्र अग्नि काल कहा गया है, जिसमें पित्त दोष अत्यंत सक्रिय हो जाता है।”

नौ तपा में शरीर पर क्या असर पड़ता है?

डॉ. औदीच्य बताते हैं कि नौ तपा में मुख्यतः तीन प्रकार के प्रभाव देखे जाते हैं:

  1. जल तत्व का क्षय: अत्यधिक पसीना निकलने से शरीर में जल की कमी हो जाती है। इससे थकान, सिरदर्द, निर्बलता, चक्कर आना जैसे लक्षण प्रकट होते हैं।
  2. पाचन शक्ति की कमजोरी: तेज गर्मी के कारण शरीर की जठराग्नि मंद पड़ जाती है, जिससे अपच, गैस, अम्लपित्त की समस्या बढ़ जाती है।
  3. त्वचा विकार: चर्म रोग जैसे फोड़े-फुंसी, घमौरियाँ, एलर्जी आदि अधिक होते हैं क्योंकि त्वचा के रोमछिद्रों में ऊष्मा फँस जाती है। आयुर्वेद के अनुसार नौ तपा में क्या करें?

डॉ. औदीच्य के अनुसार, यह समय संयम और सजगता का है। यदि हम आयुर्वेद के सिद्धांतों का पालन करें, तो यह काल हमारे लिए शरीर की शुद्धि और ऊर्जा संचय का माध्यम बन सकता है।

  1. आहार – हल्का, ठंडक देने वाला, पित्त शमन करने वाला: ठंडी प्रकृति वाले पदार्थ लें जैसे सत्तू, बेल का शरबत, आम पना, मुनक्का पानी, छाछ।

खिचड़ी, मूँग दाल, लौकी, परवल, तुरई जैसे शाक का सेवन करें।

तले-भुने, मसालेदार, गरिष्ठ भोजन से बचें।

  1. दिनचर्या – धूप से बचाव, शरीर को ठंडक: सुबह जल्दी उठें और शीतल जल से स्नान करें। दोपहर में बाहर जाने से बचें। यदि आवश्यक हो, तो सिर ढँकें और पानी साथ रखें। दिन में विश्राम करें, लेकिन गहरी नींद से बचें।
  2. जल सेवन – नियमित और संतुलित मात्रा में: बार-बार थोड़ा-थोड़ा पानी पिएँ। नारियल पानी, खस का शरबत, आम का पना उपयोगी है।

बहुत ठंडा या बर्फ मिला पानी हानिकारक हो सकता है।

  1. औषधियाँ – पित्त नियंत्रक एवं शरीर शीतल करने वाली: गुलाब शरबत, गुलकंद, खसखस, चंदनासव, औदुम्बर अवलेह प्रवाल पिष्टी का सेवन लाभकारी होता है। त्रिफला चूर्ण रात में लेने से आँतें साफ रहती हैं और गर्मी दूर होती है। मानसिक और आत्मिक स्वास्थ्य का भी समय

डॉ. औदीच्य कहते हैं कि नौ तपा केवल शारीरिक तपन का समय नहीं, यह आत्म-अनुशासन, तपस्या और संतुलन का अवसर भी है। यह काल ध्यान, योग, प्राणायाम और जलदान जैसे कार्यों से शरीर और मन की शुद्धि का माध्यम बन सकता है।

वे बताते हैं कि “जो लोग इस काल में संयमित जीवन अपनाते हैं, उन्हें वर्ष भर रोगों से सुरक्षा मिलती है।”

नौ तपा से बचाव के लिए डॉ. औदीच्य की संक्षिप्त 5 सूत्रीय सलाह:

  1. भोजन में शीतल व पचने योग्य चीजें लें।
  2. दिन में अधिक श्रम या यात्रा न करें।
  3. जल की नियमित पूर्ति करते रहें।
  4. धूप में निकलते समय सिर ढँकना अनिवार्य करें।
  5. दिनचर्या में योग व श्वास व्यायाम को स्थान दें। नौ तपा – चेतावनी नहीं, अवसर है

डॉ. शोभालाल औदीच्य नौ तपा को शरीर के डिटॉक्स का प्राकृतिक काल मानते हैं। उनका कहना है – “यदि हम इन नौ दिनों को आयुर्वेदिक दिनचर्या के अनुसार बिताएँ, तो यह मौसम हमारे लिए रोग निवारण और शक्ति संचय का स्रोत बन सकता है।”

नौ तपा हमें सिखाता है कि प्रकृति जब तीव्र होती है, तब मनुष्य को और अधिक शांत, संतुलित और सजग हो जाना चाहिए। यह संतुलन ही आयुर्वेद का मूल है – और यही संदेश डॉ. औदीच्य हर वर्ष अपने शिविरों, व्याख्यानों और सेवा कार्यों से जनमानस तक पहुँचाते हैं।

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