
एक सन्नाटा, जो तूफान से पहले था
14 मई की सुबह जयपुर के पॉश इलाके वैशाली नगर में कुछ भी असामान्य नहीं लग रहा था। कांग्रेस नेता संदीप चौधरी के घर में रोज की तरह दिनचर्या चल रही थी। उनके घर पर हाल ही में रखे गए नौकर भरत बिष्ट और उसकी पत्नी काजल काम में जुटे हुए थे। घर के अंदर नेता की मां कृष्णा चौधरी, पत्नी ममता चौधरी, बेटा राजदीप और बेटी राजश्री मौजूद थे। कोई अंदाज़ा भी नहीं लगा सकता था कि कुछ ही देर में यह घर अपराध का अखाड़ा बन जाएगा।
चाय में ज़हर, भरोसे में ख़ंजर
सुबह के करीब 11 बजे, भरत और काजल ने अपनी भूमिका निभाई – लेकिन एक नौकर की नहीं, बल्कि एक अपराधी की। उन्होंने घर की बुज़ुर्ग महिला कृष्णा और नेता की पत्नी ममता को चाय में नशीला पदार्थ मिलाकर बेहोश कर दिया। परिवार के बाकी सदस्यों को या तो एक कमरे में बंद कर दिया गया या बहाने से दूर रखा गया। इसके बाद योजना के मुताबिक बाहरी साथी हरि बहादुर धामी और दो अन्य नकाबपोश बदमाश घर में दाखिल हुए। ये सभी भरत के बुलावे पर पहले से तैयार थे।
डकैती का धुंआ, सीसीटीवी का सच
कांग्रेस नेता के घर में लाखों की नकदी और गहनों की लूट हुई। परिवार के सदस्यों की मौजूदगी के बावजूद पूरे आत्मविश्वास से बदमाशों ने घर खंगाल डाला। जाते-जाते वे सीसीटीवी कैमरों की ओर देखना नहीं भूले – पर ये लापरवाही उनके लिए सबसे बड़ा सबूत बन गई। फुटेज में सबसे पहले घर में घुसता दिखा हरि बहादुर धामी। उसके पीछे बाकी आरोपी दाखिल हुए। पुलिस ने इन फुटेज के ज़रिए ही पूरी साजिश की परतें खोलनी शुरू कीं।
पुलिस की रणनीति, शिकार की घेराबंदी
घटना की गंभीरता को देखते हुए जयपुर पुलिस तुरंत हरकत में आई। डीसीपी वेस्ट अमित कुमार और एडिशनल डीसीपी आलोक सिंघल की निगरानी में कई टीमें गठित की गईं। तकनीकी शाखा और स्थानीय इंटेलिजेंस को अलर्ट पर रखा गया। एक टीम को सीसीटीवी फुटेज के आधार पर आरोपियों के हुलिए और रूट मैप तैयार करने की जिम्मेदारी मिली। दूसरी टीमों को बिहार, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और नेपाल बॉर्डर तक भेजा गया।
सरहद के पार की साजिश
जांच में सामने आया कि भरत बिष्ट नेपाल का रहने वाला है और 28 अप्रैल को ही संदीप चौधरी के घर पर प्लेसमेंट एजेंसी के माध्यम से नौकरी पर रखा गया था। महज 16 दिनों में उसने घर की हर गतिविधि को समझा और मौका देखकर साजिश को अंजाम दिया। हरि बहादुर धामी उसका पुराना साथी था, जिसे उसने नेपाल से बुलवाया। नेपाल बॉर्डर पार कर भागने की कोशिश में थे, लेकिन जयपुर पुलिस की तेज़ी ने उन्हें 16 मई को उत्तराखंड-नेपाल सीमा पर धर दबोचा।
अधूरी गिरफ्तारी, अधूरा इंसाफ
भरत बिष्ट और हरि बहादुर धामी अब जयपुर पुलिस की गिरफ्त में हैं। पूछताछ में उन्होंने डकैती की योजना, घटनाक्रम और अन्य फरार साथियों के बारे में कुछ सुराग दिए हैं। लेकिन अभी तक भरत की पत्नी काजल और दो अन्य बदमाश फरार हैं। साथ ही, लूटी गई नकदी और गहने भी बरामद नहीं हो सके हैं। पुलिस का दावा है कि जल्द ही पूरे गिरोह को बेनकाब कर लिया जाएगा।
विश्वासघात, जो बना नासूर
इस वारदात ने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि अपराधी अब भरोसे के सबसे करीबी घेरे से भी निकल सकते हैं। संदीप चौधरी और उनका परिवार इस विश्वासघात से मानसिक और सामाजिक रूप से आहत है। कांग्रेस के कई नेताओं ने इस वारदात को “गंभीर सुरक्षा चूक” बताया है। जयपुर जैसे शहर में नेताओं के घर में घुसकर ऐसी डकैती होना पुलिस की कार्यप्रणाली पर भी सवाल खड़े करता है।
प्लेसमेंट एजेंसियों पर शिकंजा
इस घटना के बाद पुलिस ने प्लेसमेंट एजेंसियों की जांच भी शुरू कर दी है। यह खुलासा हुआ कि भरत और काजल को बिना वैरिफिकेशन के नौकरी पर रखा गया था। एजेंसी ने न तो उनका सही आईडी वेरिफिकेशन कराया और न ही आपराधिक रिकॉर्ड की जांच की। यह लापरवाही बड़े अपराध की नींव बन गई।
इंतज़ार इंसाफ़ का
अब जयपुर पुलिस की चुनौती सिर्फ फरार आरोपियों को पकड़ना नहीं, बल्कि जनता और नेताओं के टूटे भरोसे को फिर से बहाल करना है। कांग्रेस नेता संदीप चौधरी के परिवार को न्याय कब मिलेगा, यह वक्त बताएगा। लेकिन इस कहानी ने यह ज़रूर साबित कर दिया कि जब नौकर अपराधी बन जाए, तो घर की दीवारें भी भरोसे लायक नहीं रहतीं।
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